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    नई दिल्ली. जहाँ एक तरफ भारत सरकार और तमाम ऑटोमोबाइल कंपनियां पर्यावरण प्रदूषण को कम करने हेतु इलेक्ट्रिक कारों (Electric Car) पर जोर दे रही हैं। वहीं इसके चलते अब भारत में बीते दो सालों में बाइक से लेकर कार और बसों तक की कई कैटेगिरी में अनेकों ई वाहनों को सड़कों पर उतारा गया है। 

    लेकिन तैयार हो जाइए क्योंकि अब जल्द ही भारत की सड़कों पर हाइड्रोजन कार (Hydrogen Cars) भी सहान से फर्राटे मारते हुए आपको नजर आ जाएगी। चौंका गए न, अरे भाईसाहब  भारत की पहली हाइड्रोजन कार आ भी चुकी है और केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री इस कार की सवारी भी कर चुके हैं।

    आज यानी बुधवार को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) सुबह हाइड्रोजन कार लेकर संसद भवन पहुंचे। इस दौरान वहां यह कार लगातार लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रही। दरअसल इस कार को टोयोटा (Toyota) कंपनी की पायलट प्रोजेक्ट के तहत बनाया गया है। जिसमें कंपनी ने FCEV (फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वीकल) का इस्तेमाल किया है।

    क्या है ख़ास 

    लेकिन आखिर यह कार दूसरी इलेक्ट्रिक कारों से कैसे और कितनी अलग है। सबसे पहले तो यह जान लें कि टाटा नेक्सॉन ईवी या एमजी मोटर्स की जेडएस ईवी की तरह टोयोटा की मिराई भी इलेक्ट्रिक कार है। इसमें भी इंजन की जगह इलेक्ट्रिक मोटर लगी है, जो कार को पावर सप्लाई करती है।

    नाम है ‘मिराई’ 

    लेकिन साहब, आम इलेक्ट्रिक कार और इसमें बड़ा अंतर है। अमूमन इलेक्ट्रिक कार में बड़े साइज की लीथियम आयन बैटरी लगी होती है जिसमें इलेक्ट्रिसिटी स्टोर रहती है। उससे एनर्जी लेकर कार में लगी मोटर पहियों को पावर देती है। पर FCEV गाड़ियों के साथ ऐसा नहीं है। इसमें बैटरी तो होती है लेकिन एकदम छोटी सी। हाँ इसमें हाइड्रोजन फ्यूल टैंक होता है जिसमें हाइड्रोजन फ्यूल सेल विखंडित होकर एनर्जी पैदा करती है।

    क्या हैं इसकी खूबियाँ 

    इसके साथ ही इसकी एक खूबी बड़ी अच्छी है। आम इलेक्ट्रिक कार में बैटरी चार्ज होने में जहाँ कई घंटे लगते हैं। वहीं हाइड्रोजन 5 से 7 मिनट में ही भर जाती है। यह काफी अच्छी रेंज भी आपको देती है। मिसाल के तौर पर मिराई में एक फुल टैंक हाइड्रोजन फ्यूल से 650 किमी तक का सफर तय किया जा सकता है। इसे आप एक तरह से ‘जीरो एमिशन’ कार कह सकते हैं क्योंकि इसके एग्जॉस्ट से सिर्फ पानी निकलता है और इसे आपको चार्ज नहीं करना पड़ता।

    हालाँकि फिलहाल इस पायलट प्रोजेक्ट के जरिए यह भी देखा जा रहा है कि ये कारें हमारे के लिए कितनी प्रैक्टिकल साबित हो सकती हैं। फिर अगर सबकुछ ठीक रहा, तो क्या पता हाइड्रोजन से चलने वाली कार का स्टेयरिंग जल्द ही आपके हाथों में भी हो।