शादी की उम्र बढ़ाने संबंधी विधेयक पर चर्चा में केवल एक महिला, सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने पत्र लिख की संख्या बढ़ाने की मांग

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    नई दिल्ली / मुंबई: शिव सेना नेता प्रियंका चतुर्वेदी (Priyanka Chaturvedi ) ने सोमवार को इस बात पर गहरी आपत्ति जताई कि लड़कियों के विवाह की कानूनी आयु (Legal Age of Marriage) को बढ़ाकर 21 साल करने संबंधी विधेयक के आगे की पड़ताल का जिम्मा संसद (Parliament) की जिस 31 सदस्यीय समिति (Committee) को सौंपा गया है, उसमें मात्र एक महिला सांसद है।  

    राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को लिखे एक पत्र में महाराष्ट्र से राज्यसभा की सदस्य चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘यह हताशा की बात है कि महिलाओं और भारतीय समाज से संबंधित इस विधेयक पर एक ऐसी समिति चर्चा करेगी जिसमें प्रतिनिधित्व ही बहुत अनुचित है।” द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की नेता व लोकसभा सांसद कनिमोझी ने भी समिति में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व ना होने पर आपत्ति जताई।

    उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘कुल 110 महिला सांसद हैं लेकिन सरकार ने देश की हर युवती को प्रभावित करने वाले विधेयक को एक ऐसी समिति को सौंपा है जिसमें सिर्फ एक महिला और 30 पुरुष हैं। महिलाओं के अधिकार पुरुष तय करते रहेंगे और महिलाएं महज मूकदर्शक बनी रहेंगी ?”

    शिक्षा, महिला, बच्चों, युवा और खेल संबंधी संसद की स्थायी समिति में महिलाओं का उचित प्रतिनिधितव ना होने पर चिंता जताते हुए चतुर्वेदी ने नायडू से बाल विवाह निषेध (संशोधन) विधेयक पर चर्चा में अधिक से अधिक महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का आग्रह किया।

    भाजपा के वरिष्ठ नेता विनय सहस्रबुद्धे के नेतृत्व वाली संसद की इस स्थायी समिति में कुल 31 सदस्य हैं और इनमें तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव अकेली महिला हैं। चतुर्वेदी ने अपने पत्र में लिखा, ‘‘इसलिए मैं आपसे आग्रह करती हूं कि विधेयक पर चर्चा के दौरान महिलाओं की अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए क्योंकि यह विधेयक देश की महिलाओं की समस्याओं से संबंधित है।”

    महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से लाए गए इस विधेयक में विवाह की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का प्रस्ताव है। संपर्क किए जाने पर देव ने कहा कि समिति में और महिला सांसद होती तो बेहतर होता। देव ने कहा, ‘काश समिति में और महिला सांसद होतीं, लेकिन हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सभी हितधारक समूहों की बात सुनी जाए।’

    प्रस्तावित कानून देश के सभी समुदायों पर लागू होगा और एक बार लागू होने के बाद यह मौजूदा विवाह और ‘पर्सनल लॉ’ का स्थान लेगा। संसद के शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पेश किए जाने का कुछ सदस्यों ने विरोध किया था और मांग की थी कि गहन विमर्श और भावी संशोधनों की पड़ताल के लिए इसे संसद की स्थायी समिति को भेजा जाए।