File Photo: PTI
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    नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी (Varanasi) जिले में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर (Gyanvapi Mosque) में सर्वेक्षण शुरू हो चुका है। रविवार को लगातार दूसरे दिन यहां सर्वे-वीडियोग्राफी हुई। इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार (RSS Leader Indresh Kumar) ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि देश की जनता ताजमहल (Taj Mahal), ज्ञानवापी (Gyanvapi), कृष्ण जन्म भूमि (Krushna Janmabhoomi) की सच्चाई जानना चाहते हैं।

    इंद्रेश कुमार ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि, “ताजमहल, ज्ञानवापी, कृष्ण जन्म भूमि को लेकर अनेक स्थान हैं जिनकी दुनिया में चर्चा चली कि इन जगहों की सच्चाई क्या है। सभी इसका सत्य जानना चाहते हैं। इसलिए नहीं कि कोई द्वेष और हिंसा है। इनका सत्य जानने में कोर्ट को मदद करनी चाहिए।”

    बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने ताजमहल के ‘सच’ को सामने लाने के लिए ‘तथ्यान्वेषी जांच’ की मांग करने वाली और इस वैश्विक धरोहर परिसर में बने 22 कमरों को खुलवाने का आदेश देने का आग्रह करने वाली याचिका को गुरुवार को खारिज कर दिया था।

    न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने याचिका पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अदालत लापरवाही भरे तरीके से दायर की गई याचिका पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत आदेश पारित नहीं कर सकती है।

    न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय कहा कि याचिकाकर्ता पीआईएल व्यवस्था का दुरुपयोग न करें। पहले रिसर्ज करें, पीएचडी करें, उसके बाद कोर्ट आएं। अगर कोई रिसर्च करने से रोके तब हमारे पास आइए। न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय ने यह भी कहा कि, कल को आप आएंगे और कहेंगे कि आपको जजों के चैंबर में जाना है, तो क्या हम आपको चैंबर दिखाएंगे? इतिहास आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा।

    गौरतलब है कि अयोध्या निवासी रजनीश सिंह ने ताजमहल के इतिहास का पता लगाने के लिए एक समिति गठित करने और इस ऐतिहासिक इमारत में बने 22 कमरों को खुलवाने का आदेश देने का आग्रह करते हुए याचिका दायर की थी। याचिका में 1951 और 1958 में बने कानूनों को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग की गई थी। इन्हीं कानूनों के तहत ताजमहल, फतेहपुर सीकरी का किला और आगरा के लाल किले आदि इमारतों को ऐतिहासिक इमारत घोषित किया गया था। कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अतीत में दावा किया था कि मुगल काल का यह मकबरा भगवान शिव का मंदिर था। यह स्मारक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है। (एजेंसी इनपुट के साथ)