भारत पर राज करने वाला छठा मुग़ल शासक था औरंगजेब, जानें कैसे हुआ सत्ता पर काबिज

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    नई दिल्ली. भारत पर लंबे समय तक शासन करने वाले औरंगजेब का आज जन्मदिन है। उसका जन्म 3 नवंबर 1618 को दाहोद, गुजरात में हुआ था। वो शाहजहां और मुमताज महल की छठी संतान और तीसरा बेटा था। उसका पूरा नाम मुहिउद्दीन मोहम्मद है लेकिन उसे औरंगजेब या आलमगीर के नाम से जाना जाता था। वह भारत पर राज करने वाला छठा मुग़ल शासक था। जिसने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी अधिक समय तक राज किया। वो अकबर के बाद सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था।

    औरंगजेब के पिता उस समय गुजरात के सूबेदार थे। जून 1626 में जब उसके पिता ने विद्रोह किया जो असफल रहा। जिसके बाद औरंगज़ेब और उसके भाई दारा शूकोह को उसके दादा जहाँगीर के लाहौर वाले दरबार में नूरजहाँ द्वारा बंधक बना कर रखा गया था। इसके बाद जब 26 फरवरी 1628 को जब शाहजहां को मुगल सम्राट घोषित किया गया तब औरंगज़ेब आगरा किले में अपने माता-पिता के साथ रहने के लिए वापस लौटा। यहीं पर उसने ने अरबी और फ़ारसी की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की।

    मुग़ल प्रथाओं के अनुसार, शाहजहाँ ने 1634 में शहज़ादे औरंगज़ेब को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया। उसने 1637 में उन्होंने रबिया दुर्रानी से विवाह किया। वहीं इधर शाहजहाँ मुग़ल दरबार का कामकाज अपने बेटे दारा शिकोह को सौंपने लगा। 1644 में औरंगज़ेब की बहन एक दुर्घटना में जलकर मर गयी। औरंगज़ेब इस घटना के तीन हफ्तों बाद आगरा आया जिससे उनके पिता शाहजहाँ को उस पर बहुत क्रोध आया। उसने औरंगज़ेब को दक्कन के सूबेदार के पद से निलंबित कर दिया। औरंगज़ेब 7 महीनों तक दरबार नहीं आया। बाद में शाहजहाँ ने उसे गुजरात का सूबेदार बना दिया। औरंगज़ेब ने सुचारु रूप से शासन किया और उसे इसका परिणाम भी मिला, उसे बदख़्शान (उत्तरी अफ़गानिस्तान) और बाल्ख़ (अफ़गान-उज़्बेक) क्षेत्र का सूबेदार बना दिया गया।

    इसके बाद उसे मुल्तान और सिन्ध का भी सूबेदार बनाया गया। इस दौरान वे फ़ारस के सफ़वियों से क़ंधार पर नियन्त्रण के लिए लड़ते रहे पर उन्हें पराजय के अलावा और कुछ मिला तो वो था अपने पिता की उपेक्षा। 1652 में उन्हें दक्कन का सूबेदार पुनः बनाया गया। उन्हें गोलकोंडा और बीजापुर के विरुद्ध लड़ाइयाँ की और निर्णायक क्षण पर शाहजहाँ ने सेना वापस बुला ली। इससे औरंगज़ेब को बहुत ठेस पहुँची क्योंकि शाहजहाँ ऐसे उनके भाई दारा शिकोह के कहने पर कर रहे थे।

    शाहजहाँ 1657 में ऐसे बीमार हुए कि लोगों को उसका अन्त निकट लग रहा था। ऐसे में दारा शिकोह, शाह शुजा और औरंगज़ेब के बीच में सत्ता को पाने का संघर्ष आरंभ हुआ। शाह शुजा ने स्वयं को बंगाल का राज्यपाल घोषित कर दिया था, अपने बचाव के लिए बर्मा के अरकन क्षेत्र में शरण लेने पर विवश हो गया। वहीं 1658 में औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को आगरा किले में बंदी बना लिया और स्वयं को शासक घोषित किया। इतना ही नहीं दारा शिकोह को विश्वासघात के आरोप में फाँसी दे दी गयी।

    औरंगज़ेब के शासन काल में युद्ध-विद्रोह-दमन-चढ़ाई इत्यादि का ताँता लगा रहा। पश्चिम में सिखों की संख्या और शक्ति में बढ़ोत्तरी हो रही थी। दक्षिण में बीजापुर और गोलकुंडा को अन्ततः उन्होंने पराजित दिया पर इस बीच छत्रपती शिवाजी महाराज की मराठा सेना ने उनकी नाक में दम कर दिया। शिवाजी महाराज को औरंगज़ेब ने गिरफ्तार कर तो लिया पर शिवाजी महाराज और पुत्रसंभाजी महाराज के भाग निकलने पर उनके लिए बहुत चिन्ता का कारण बन गये। शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद भी मराठे औरंगज़ेब को युद्ध के लिये ललकारते रहे।

    औरंगज़ेब के शासन में मुग़ल साम्राज्य अपने विस्तार के शिखर पर पहुँचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शक्तिशाली व्यक्ति था। उसने अपने जीवनकाल में दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में प्राप्त विजयों के माध्यम से मुग़ल साम्राज्य को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और 15 करोड़ लोगों पर शासन किया जो की जगत की जनसंख्या का 1/4 था।

    औरंगज़ेब ने पूरे साम्राज्य पर शरियत आधारित फ़तवा-ए-आलमगीरी लागू किया और कुछ समय के लिए ग़ैर-मुसलमानों पर और ज़ियादा कर भी लगाया। अ-मुसलमान प्रजा पर शरीयत लागू करने वाला वो प्रथम मुसलमान शासक था। उसने सिखों के गुरु तेग बहादुर की हत्या कर दी थी। उसने अपने जीवनकाल में उन्होंने दक्षिणी भारत में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार करने का भरपूर प्रयास किया पर उनकी मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य का सिकुड़ना आरम्भ हो गया। औरंगज़ेब की मौत अहमदनगर में 3 मार्च सन 1707 ई. में हो गई।