सिंधुताई सपकाल: … कभी जलती चिता पर रोटी सेंक भरा था पेट, फिर ऐसे बनी हजारों अनाथों की माँ

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    नई दिल्ली: अनाथों की सेवा करनेवाली भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री पुरस्कार से सन्मानित सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal Dies) का मंगलवार को पुणे (Pune) में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 73 साल की थी।  उन्होंने, बेसहारा, अनाथ बच्चों की देखभाल को ही अपना उद्देश्य बनाया। उन्हें “अनाथों की माई” नाम से जाना जाता था। सिंधुताई सपकाल समूचे विश्व में विख्यात थी। अनाथों की माँ कहीं जानेवाली सिंधुताई ने सेवाकार्य से अपनी  अलग पहचान बनाई थी।  

    प्रारंभिक जीवन

    सिंधुताई का जन्म महाराष्ट्र में वर्धा जिले के पिंपरी मेघे नामक गांव में 14  नवंबर 1948 में हुआ था। उनके परिवार को बच्ची नहीं चाहिए थी, इसलिए इस इस अनचाही बच्ची का नाम ‘चिंधी’ रखा गया। सिंधुताई के पिता अभिमान साठे अपनी पत्नी के विरोध के बावजूद उनकी शिक्षा को लेकर सजग थे। लेकिन 4 कक्षा तक पढ़ने के बाद मात्र 12 वर्ष की आयु में सिंधुताई की शादी उनसे काफी उम्रदराज़ श्रीहरी सपकाल से कर दी गई। बता दें कि, सिंधुताई केवल 20 उम्र में 3 बच्चों को मां बन चुकी थी।

    प्रताड़ना और संघर्ष    

     सिंधुताई का जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। वे जब चौथी बार गर्भवती थीं, तब उनके पतीने बड़ी ही निर्दयता से उन्हें धक्के मारकर घर से बाहर निकाल दिया था। उस वक्त वों नौ माह की गर्भवती थी। सिंधुताई को दमडाजी आसटकर नामक जमींदार के कारण बेघर होना पड़ा था। दरअसल, बात यह थी कि,  उन्होंने आपने गांव में गाय का गोबर उठानेवाली महिलाओं के मेहनताने के लिए आवाज उठाई  थी। 

    जिसका असर हुआ और जिलाधिकारी ने इस बात का संज्ञान लेते हुए महिलाओं को उनका हक़ दिया। लेकिन महिलाओं के इस काम के बदले में दमड़ाजी को वनविभाग से जो पैसा मिलता था, वो बंद हो गया। जिस वजह से उसने सिंधुताई के गर्भ में अपना बच्चा होने का दुष्प्रचार किया। जिसके बाद सिंधुताई के जीवन में अंधेरा छा गया।  

    प्रसव के दर्द से कराहती सिंधुताई ने गाय के बाड़े में (तबेला) अपनी बच्ची को जन्म दिया था।  सिंधुताई ने कई कार्यक्रमों में इस बात का उल्लेख किया है कि, उन्होंने अपनी गर्भनाल को 16 बार पत्थर मारकर तोडा था। अपनी नवजात बेटी को लेकर सिंधुताई दरदर भटकीं,  लेकिन कोई भी उनके सहारा बनकर आगे नहीं आया था। यहाँ तक की उनकी अपनी मां ने भी उनका साथ था।

    जिसके बाद सिंधुताई ने  संकट का सामना करते हुए शमशान में शरण ली। वहां  उन्होंने जलती हुई लाश की अग्नि पर वहीँ क्रिया कर्म के लिए रखे आटे की रोटियाँ सेंककर माँ, बेटीने अपनी भूक मिटाई। अपने संघर्ष भरे जीवन में सिंधुताई ने कभी ट्रेन, कभी और कहीं भिक्षा मांगकर गुजारा किया था। इस दौरान उन्हें कई अनाथ और बेसहारा बच्चे मिले, जिनके लिए सिंधुताई के मन में ममता जागी। और सिंधुताई को अपने जीवन में एक मकसद मिल गया। 

    नया जन्म

    सिंधुताई ने बेसहारा, अनाथ बच्चों की देखभाल करना ही उनके नए जीवन का उद्देश्य बन गया। इस तरह सिंधुताई का नया जन्म हुआ। वे जगह जगह जातें थे और बच्चो के लिए खाना एवं अन्य मदत जुटातीं थे। पहले तो समाज ने उन्हें नकारा, लेकिन उनके कार्य देखकर लोग अपनी इच्छा से उनकी मदद  आए। यहां  तक का सफर काफी कठीनाईयाँ से भरा और काँटोंभरी राहों का था। सिंधुताई अपने कार्य के लिए इतने प्रेरित थे की उन्होंने इस कार्य के लिए अपनी बेटी ममता को भी खुद से दूर कर दिया था। उन्होंने श्रीमंत दगडुशेठ हलवाई गणपति ट्रस्ट को सौंपकर वों सैकड़ों बच्चों की ‘माई’ बन गई। 

    सिंधुताई का 73 वर्ष का जीवन सफर काफी संघर्ष भरा था, लेकिन उन्होंने उसी संघर्ष को मत देकर उन्हें उत्साह में बदल दिया। उन्होंने अपने जीवन में करीब 1050 अनाथ बच्चों का पालनपोषण किया, उन्हें पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाया। इनमें से कई लोग आज खुद अनाथाश्रम चलातें हैं। पुणे जिले के मांजरी में सिंधुताई के अनाथाश्रम की ईमारत है।  

    पुरस्कार 

    सिंधुताई को उनके अद्भुत कार्य के लिए करीब 900 से अधिक राष्ट्रिय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से  नवाजा गया। उन्हें समाजकार्य के लिए हालहि  में पद्मश्री से नवाजा  गया। उन्हें मिले पुरस्कारों में भारत के राष्ट्रपति की ओर से नारी शक्ति पुरस्कार, अहिल्याबाई होळकर पुरस्कार  (महाराष्ट्र राज्य), राष्ट्रीय पुरस्कार “आयकौनिक मदर”, सह्याद्रि हिरकणी पुरस्कार, रियल हिरोज पुरस्कार (रिलायंस), अहमदिया मुस्लिम शांति पुरस्कार,  बसव सेवा संघ पुणे से बसव भूषण पुरस्कार, सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा पुरस्कार, प्रतिष्ठित माँ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे कई सम्मान शामिल है।

    मराठी फिल्म- मी सिंधुताई सपकाल

    सिंधुताई के जीवनी पर साल 2010 में मराठी फिल्म ‘मी सिंधुताई सपकाल’ बनाई गई। उसमें उनकी संघर्षयात्रा एवं सेवाकार्य को प्रभावी रूप से पर्देपर उतारा गया है।  इस फिल्म में सिंधुताई की भूमिका शिद्दत से निभाने के लिए अभिनेत्री तेजस्विनी पंडित को राष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फिल्म का निर्देशन जानेमाने फ़िल्मकार अनंत महादेवन ने किया था।        

    संदेश एवं प्रेरणा

    सिंधुताई अपने  संदेश में कहा, ‘स्वार्थ के लिए तो सभी जीते हैं, थोड़ा दूसरों के लिए भी जियो। माई ने आज के युवाओं  को हमेशा प्रेरणा दी। उन्होंने ने युवाओं को बताया, ‘अपनी पढाई लिखाई का दूसरों के कल्याण में, राष्ट्रहित में इस्तेमाल करो। उन्होंने, माता-पिता को अकेले न छोड़ने का आवाहन भी किया।’   सिंधुताई ने अपने नाम की तरह ही अपना पूरा जीवन दूसरों के लिए समर्पित किया। वह सचमुच ममता का सिंधु (सागर) थी।