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    नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में मंगलवार को एक याचिकाकर्ता ने कहा कि कानून के तहत ‘सुविधाजनक व्यवस्थाएं’ नहीं चल सकतीं और पीएम केयर्स निधि को या तो संविधान के सख्त प्रावधानों के अधीन आना चाहिए या इसे ‘राज्य’ नहीं कहा जाना चाहिए।

    कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ के समक्ष यह दलील दी गयी, जो सम्यक गंगवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में पीएम केयर्स निधि को संविधान के तहत ‘राज्य’ घोषित किये जाने का अनुरोध किया गया है 

    केंद्र ने अदालत से याचिका पर सुनवाई टालने का अनुरोध किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका के पीछे के ‘स्रोत’ पर सवाल उठाया। पीठ ने सरकार की दलीलों के लिये मामले को 12 जुलाई को सूचीबद्ध करने से पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता को सुना।

    पीएम केयर्स ट्रस्ट में मानद आधार पर कर्तव्य का निर्वहन कर रहे प्रधानमंत्री कार्यालय में एक अवर सचिव के हलफनामे पर केंद्र ने कहा है कि पीएम केयर्स निधि सरकारी कोष नहीं है, क्योंकि इसमें दिया जाने वाला दान भारत की संचित निधि में नहीं जाता है और संविधान और सूचना के अधिकार कानून के तहत इसका चाहे जो भी दर्जा हो, तीसरे पक्ष को सूचना नहीं दी जा सकती। 

    याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि कोई व्यक्ति ऐसे कोष के सृजन के लिए कानून से बाहर जाकर अनुबंध नहीं कर सकता, जिसमें सार्वजनिक दान आता हो और वरिष्ठ मंत्री जिसके पदेन सदस्य हों। उन्होंने कहा कि जनता को जानने का अधिकार है और पीएम केयर्स निधि का संचालन सुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों से होना चाहिए। दीवान ने कहा, ‘‘हमें यही नहीं पता कि कौन दान कर रहा है। पारदर्शिता संवैधानिक तानेबाने के लिए जरूरी है।”

    उन्होंने कहा कि इस कोष का उद्देश्य भले ही प्रशंसनीय हो, लेकिन कानून कोई ऐसी समांतर इकाई सृजित करने की अनुमति नहीं देता, जो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो। उन्होंने कहा, ‘‘या तो आप राज्य हैं और संविधान के दायरे में आइए या खुद को राज्य मत कहिए।” दीवान ने कहा, ‘‘क्या हम संविधान के तहत ऐसी सुविधाजनक व्यवस्था की अनुमति दे सकते हैं? हम यह नहीं कह रहे कि यह दुर्भावनापूर्ण काम है, लेकिन संरचना कानूनी तौर पर आपत्तिजनक है।”(एजेंसी)