नई दिल्ली : आज संत रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti) है, जिसे देशभर में बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। संत रविदास का जन्म काशी में 1398 में माघ महीने (Magh Month) की पूर्णिमा तिथि को हुआ था। इस वर्ष यह जयंती 5 फरवरी, रविवार को मनाई जा रही है। रविदास के पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कलसांं देवी था। उनकी पत्नी का नाम लोना देवी बताया जाता है। उन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास, रूहीदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जाना जाता है। रविदास जयंती और माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। संत रविवास बड़े धार्मिक स्वभाव के थे। उन्होंने ने ईश्वर की भक्ति में समर्पित होने के साथ-साथ अपने सामाजिक और पारिवारिक कर्तव्यों का बखूबी निर्वाह किया। उन्होंने लोगों को बिना भेदभाव के एक-दूसरे से प्यार करना सिखाया और इसी तरह उन्होंने भक्ति के मार्ग का पालन किया और संत रविदास कहलाए। उनकी शिक्षाओं और उपदेशों से आज भी समाज को मार्गदर्शन मिलता है।
इतिहासकारों के अनुसार भारत देश में कई महान संत और कवि हुए हैं। संत रविदास उन महापुरुषों में से एक हैं, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक शब्दों के माध्यम से पूरे विश्व को ज्ञान, एकता और भाईचारे का संदेश दिया। संत रविदास से प्रभावित होकर कई लोग भक्ति मार्ग से जुड़े। रविदास के अनुयायी आज भी उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं का पालन करते हैं और उनकी जयंती को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। उनकी मृत्यु वाराणसी में 1528 में हुई।आइए जानते हैं कौन थे संत रविदास।
कौन थे संत रविदास?
कई इतिहासकारों का कहना है कि, संत रविदास का जन्म काशी में सन 1398 में हुआ। वहीं, कुछ जानकारों का कहना है कि, उनका जन्म सन 1482 में हुआ था। संत रविदास का जन्म एक चर्मकार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कलसांं देवी था। वे संत, कवि और भगवान भक्त थे। इनकी रचना में भक्ति की भावना और आत्म निवेदन पाई जाती है। संत रविदास जी ने लोगों को ईश्वर को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग का चयन करने की सलाह दी। स्वंय भक्ति के मार्ग पर चलकर संत रविदास ने ईश्वर और दिव्य ज्ञान की प्राप्ति की। इनकी रचना बेहद प्रमुख हैं। आज भी भजन-कीर्तन के समय रैदास की रचना गाई जाती है।
संत रविदास का परिवार
- पिता: संतोक दास
- माता: कलसांं देवी
- दादा: कालूराम
- दादी: लखपती देवी
- पत्नी: लोना देवी
- पुत्र: विजय दास
“प्रभुजी तुम चंदन हम पानी
जाकी अंग अंग वास समानी”
रैदास ने अपनी रचना में प्रभु की स्तुति की है। साथ ही भाषा को सरल और सहज रखा है। रैदास की रचना आम लोगों के चेहरे पर रहती है। संत रविदास ने अपने जीवन की घटनाओं को काव्य के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत किया है।