जब भारत ने पाकिस्तान के किए दो टुकड़े, पूर्व पाकिस्तान बना बांग्लादेश

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    नई दिल्ली: आज बांग्लादेश स्वतंत्र दिवस की 50वी सालगिरह मना रहा है। बांग्लादेश लिबरेशन आर्मी (बीएलए) पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराने के लिए उनकी सेना के साथ काफी संघर्ष किया था। इस युद्ध के लिए बीएलए को भारत में प्रशिक्षण दिया गया था। हालांकि भारतीय सेना शुरू से इस युद्ध का हिस्सा नहीं रही थी। लेकिन, फिर भी पाकिस्तानी सेना ने भारत के खिलाफ ‘ऑपरेशन चंगेज खान’ शुरू किया और भारत की पश्चिमी सीमा पर हमला कर दिया था। उसके बाद भारत ने न केवल इस युद्ध में भाग लिया, बल्कि महज़ 14 दिनों में पाकिस्तान को दो टुकड़े भी कर दिए थे। इसी के साथ आज ही के दिन 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश का उदय हुआ था। इस दिन को भारत में ‘विजय दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है।

    पूर्वी पाकिस्तान में सेना का दमन

    पाकिस्तान का सैनिक तानाशाह याहिया खां अपने ही देश के पूर्वी भाग में रहने वाले लोगों का दमन कर रहा था। 25 मार्च, 1971 को उसने पूर्वी पाकिस्तान की जनभावनाओं को कुचलने का आदेश दे दिया। इसके बाद आंदोलन के अगुआ शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया। लोग भारत में शरण लेने लगे। इसके बाद भारत सरकार पर हस्तक्षेप का दबाव बनने लगा।

    जनरल शॉ का पक्का इरादा

    तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेनाध्यक्ष जनरल मानिक शॉ से बातचीत की। तब भारत के पास सिर्फ एक माउंटेन डिवीजन था और उसके पास भी पुल निर्माण की क्षमता नहीं थी। वहीं मानसून दस्तक देने वाला था, ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करना जोखिमभरा था। जनरल शॉ ने साफ कह दिया कि वह मुकम्मल तैयारी के साथ ही युद्ध के मैदान में उतरेंगे।

    दुश्मन ने कर दिया हमला

    तीन दिसंबर, 1971 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कलकत्ता (कोलकाता) में जनसभा कर रही थीं। शाम के वक्त पाकिस्तानी वायुसेना ने पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि सैन्य हवाई अड्डों पर बमबारी शुरू कर दी। सरकार ने जवाबी हमले की योजना बनाई।

    भारत का आक्रामक जवाब

    भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान के जेसोर व खुलना पर कब्जा कर लिया। 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने एक गुप्त संदेश पकड़ा कि ढाका के गर्वनमेंट हाउस में पाकिस्तान के शीर्ष अधिकारियों की बैठक होने वाली है। बैठक के दौरान ही भारतीय मिग-21 विमानों ने बम गिराकर उसकी छत उड़ा दी।

    पाकिस्तानी सैनिक बने युद्धबंदी

    जनरल मानिक शॉ ने जनरल जेएफआर जैकब को 16 दिसंबर को आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तत्काल ढाका पहुंचने का संदेश दिया। पाकिस्तानी जनरल एएके नियाजी के पास ढाका में 26 हजार से ज्यादा सैनिक थे, जबकि भारत के पास वहां से 30 किलोमीटर दूर सिर्फ 3,000 सैनिक उपलब्ध थे। जनरल जैकब नियाजी के कमरे में पहुंचे और देखा कि मेज पर समर्पण के दस्तावेज रखे हुए थे। लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ढाका पहुंचे। नियाजी ने रिवॉल्वर व बिल्ले लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिए। दोनों ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। 17 दिसंबर को 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को युद्धबंदी बनाया गया। करीब 3,900 भारतीय सैनिकों ने शहादत दी। इस प्रकार बांग्लादेश की नींव पड़ी।  

    पाकिस्तान का समर्पण 

    जनरल जैकब ने नियाज़ी को इसके बारे में बताया। उन्होंने कहा, “पाकिस्तानी सैनिकों और उनके परिवारों की सुरक्षा की गारंटी तभी दी जाएगी जब पाकिस्तान आत्मसमर्पण के पत्र पर हस्ताक्षर करेगा। अन्यथा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।” जनरल नियाज़ी इसके लिए तैयार नहीं थे। जनरल जैकब ने उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए आधा घंटा दिया। आधे घंटे बाद, जनरल जैकब ने नियाज़ी से तीन बार पूछा कि क्या वह आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार है। जनरल नियाज़ी ने कोई जवाब नहीं दिया। अंत में, जनरल जैकब ने यह महसूस करते हुए कि नियाज़ी ने उसके आत्मसमर्पण के लिए सहमति दे दी है, ढाका के रेसकोर्स मैदान में दो कुर्सियों की स्थापना की।

    तब तक भारत के मेजर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा भी ढाका पहुंच चुके थे। उनके सामने 93,000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना के जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने आखिरकार भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। आत्मसमर्पण के समय जनरल नियाजी की आंखों में आंसू थे।

    भारतीय सेना ने बाद में दोनों देशों के बीच शिमला समझौते के तहत बंदियों को रिहा किया। भारत ने मात्र 14 दिनों में युद्ध जीत लिया था और बांग्लादेश को आजाद करा लिया था।