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  • शिक्षा मंत्री वर्षा से न्याय देने लगाई गुहार
  • बिना वेतन के 12 वर्षों से बच्चों को पढ़ा रहे 13 सौ अध्यापक

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साक्री. जूनियर कालेज के लगभग 13 सौ अध्यापकों के पद विगत एक दशक से ज्यादा समय से मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं. उक्त पदों पर काम कर रहे शिक्षकों की हालत न घर का न घाट का ऐसी हो गई है. इसी मुद्दे को लेकर संघर्षरत अध्यापकों के संगठन के महासंघ ने समन्वयक प्रो.मुकुंद आंदलकर, अध्यक्ष प्रो.डॉ. संजय शिंदे, सचिव प्रो. संतोष फ़ाजगे के नेतृत्व में शिक्षा विभाग की मंत्री वर्षाताई गायकवाड़ को ज्ञापन दिया है.

महासंघ ने गायकवाड़ को सौंपा ज्ञापन

महासंघ ने कहा है कि ये अध्यापक अब इतने वर्षों से बिना वेतन के पढ़ा रहे हैं, पैसे के अभाव में अब ये भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं. उक्त मसला सन 2003 से 2019 के दरमियान जूनियर कालेज में पढ़ाने वाले अध्यापकों के अतिरिक्त पदों का है. जूनियर कॉलेज के अध्यापकों के पद मंजूरी की प्रतीक्षा में विगत 12 साल से शिक्षा विभाग यानि सरकार के पास लटके पड़े हैं. 13 सौ पदों की नियुक्तियां लंबित हैं. उक्त अतिरिक्त पदों को कई वर्षों से मंजूरी का इंतजार है. इन्हीं पदों पर 1298 जूनियर कालेज के अध्यापक विगत बारह वर्षों से जूनियर कॉलेजों में बिना वेतन के पढ़ा रहे हैं.

अध्यापकों के मुद्दे को सरकार लटकाए रखा

हकीकत में 26 मार्च, 2002 के सरकार के निर्णय के अनुसार  उक्त अतिरिक्त पदों को जिस वर्ष इन्हें भरा जाता है, उसी शैक्षिक वर्ष में मंजूर किया जाना चाहिए. लेकिन इसकी बजाय, सरकार ने इस मुद्दे को लटकाए रखा है. अब इसी स्थिति में अवैतनिक काम कर रहे शिक्षकों के परिवार के जीवन-यापन पर संकट गहरा गया है.

बुद्धिजीवियों के साथ ऐसा बर्ताव उचित नहीं

महासंघ द्वारा दिए ज्ञापन में कहा गया है कि उक्त शिक्षक अब भुखमरी की कगार पर हैं. समाज के लिए यह अच्छी बात नहीं है कि जूनियर कालेज में पढ़ानेवाले बुद्धिजीवियों और उच्च शिक्षित शिक्षकों के ऐसे हालात हो जाएं. ऐसी गंभीर स्थिति औऱ आर्थिक रूप से टूट चुके ये अध्यापक अपने पदों को सरकार और शिक्षा विभाग द्वारा इतने वर्षों से मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा में हैं.

आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला

उक्त अतिरिक्त पदों की मंजूरी के लिए समय-समय पर  जूनियर कालेज अध्यापक संगठन के महासंघ द्वारा कई आवेदन दिए गए, ज्ञापन कई बार सौंपे, प्रतीकात्मक आंदोलन हुए, किंतु जवाब में, सरकार ने कोरे आश्वासन दिए. जिसके चलते पदों को मंजूरी शीघ्र ही मिल जाएगी का राग सरकार द्वारा  हर बार आलापा गया. लेकिन एक दशक के संघर्ष के बाद भी ऐसा हुआ नहीं. अभी भी उक्त पदों की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है. परिणामस्वरूप, इन पदों पर कार्यरत अवैतनिक शिक्षकों का बसा-बसाया संसार उजड़ने की नौबत आ गयी है. वे अत्यधिक वित्तीय और मानसिक तनाव में जिंदगी गुजार रहे हैं.

अनुदान के साथ पदों को दें मंजूरी

महासंघ ने सूबे के शिक्षा विभाग की मंत्री वर्षाताई गायकवाड़ से अनुरोध किया है कि अनुदान के  साथ उक्त पदों को मंजूरी प्रदान की जाए. ज्ञानदान के पवित्र कार्य करनेवाले उक्त अवैतनिक अध्यापकों को न्याय मिले, जो विगत दस से बारह वर्षों से अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभा रहे हैं.