संसद में गूंजा केला उत्पादकों का मुद्दा

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  • सांसद खडसे ने की किसानों को राहत देने की मांग
  • कोरोना से टूटी केला उत्पादकों की कमर

जलगांव. कोरोना के संक्रमण के कारण जिले के केला उत्पादक किसानों की कमर टूट गई है. तत्काल किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करने और प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना में किसानों के लिए अनुकूल मानकों और मानदंडों को स्थापित करने की मांग की है. सदन में कोरोनावायरस के प्रकोप के कारण उत्पन्न स्थितियों पर चर्चा करते हुए सांसद रक्षा खडसे ने सदन में जलगांव जिले के केला उत्पादक किसानों की समस्या रखी.

कम कीमतों में बेचने पर मजबूर किसान

सदन में अपनी बात रखते हुए खडसे ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने पर्यटन, परिवहन हवाई परिवहन के साथ किसानों को व्यापक नुकसान पहुंचाया है. रावेर लोकसभा क्षेत्र में, केले की खेती लगभग 85,000 हेक्टेयर भूमि पर की जाती है. इस केले की पूरे देश में विशेष पहचान है. कोरोना वायरस ने केले उत्पादकों को प्रभावित किया है, जिन्हें लॉकडाउन के कारण कम कीमतों पर अपने केले बेचने पड़े हैं.

एक ओर कोरोना महामारी और दूसरी ओर प्राकृतिक आपदा के कारण किसान आर्थिक समस्या में घिरा है.लॉकडाउन में किसानों के सब्जी फल फ्रूट और अनाजों को समर्थन मूल्य प्राप्त नहीं हुआ. जिसके चलते उन्हें मिट्टी के भाव में कृषि उत्पादन को बेचने पर विवश होना पड़ा है. सितंबर माह में फसलें कटाई और सुरक्षित भंडारण के लिए तैयार थीं. अतिवृष्टि के कारण किसानों की अन्य फसलों के साथ केला फसल का बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा है.

भारी बारिश के कारण केला किसानों को कुकुंबर मोज़ेक वायरस का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा 2012-13 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत शुरू किए गए कार्यक्रम में केले की फसलों के रोग को समाप्त करने के उपाय किए गए थे. लेकिन इस योजना को केंद्र सरकार ने  2017-18 से बंद कर दिया है. इस योजना को तत्काल जारी कर उत्पादक किसानों को राहत देने की मांग उन्होंने सदन में की है.

महाराष्ट्र राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के माध्यम से प्राप्त मुआवजे के मानदंडों को बदल दिया है. इन नए मानदंडों के कारण किसानों को नुकसान भरपाई नहीं मिल रही है. यह मापदंड किसानों के लिए हानिकारक है.

नए मानदंडों को बदलने की जरूरत

सांसद रक्षा खडसे ने राज्य सरकार की उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध किया गया है कि तीन वर्षों की अवधि के लिए निर्धारित किए गए नए मानदंडों और मानकों को बदले. लेकिन राज्य सरकार ने केंद्र सरकार पर उंगली उठाते हुए कह रही है कि अगर इन मानदंडों को बदलना है तो केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारियों से अनुमति लेनी चाहिए. इसे तत्काल बदला जाए, इस तरह की मांग उन्होंने सदन में उठाई है.