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    धुलिया. प्रशासन की उदासीनता के कारण जामफल परियोजना (Jamfal Project) का कार्य धीमी गति से चल रहा है। मुआवजा राशि (Compensation Amount) देने की मांग को लेकर किसानों (Farmers) ने तीस दिनों तक विरोध प्रदर्शन करते हुए काम को रोक दिया था। प्रशासनिक अधिकारियों के आश्वासन के बाद एक बार फिर परियोजना का कार्य शुरू हुआ है, किंतु काली मिट्टी और बजरी मुरुम की कमी के कारण ताप्ती नदी (Tapti River) पर सुलवाडे परियोजना को भरने के लिए काम बहुत ही धीमी गति से चल रहा है। 

    काली मिट्टी और  किसानों का हर्जाना नहीं अदा करने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। इसलिए इस परियोजना के पूरा होने में अधिक समय लगेगा। दो साल में मात्र 25 प्रतिशत कार्य ही हुआ है, जबकि इस काम की अवधि तीन साल की है।  75 प्रतिशत कार्य जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण अधर में लटका हुआ है। अकालग्रस्त तहसीलों के किसानों को पता नहीं और कितने सालों तक पानी का इंतजार करना पड़ेगा।

    एक माह तक चला किसानों का आंदोलन

    जामफल-सुलवाड़े परियोजना का कार्य लगभग पहले चरण के आस-पास ही चल रहा है। 70 प्रतिशत पानी परियोजना में भंडारण होने की उम्मीद थी और काम में तेजी लाने की उम्मीद थी, लेकिन किसानों ने मुआवजे के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था। इसके कारण इसका काम करीब एक माह तक बंद था। किसानों के आंदोलन को रोकने के लिए प्रशासन ने  ज्यादा प्रयास नहीं किए। ठेकेदार ने हताश होकर निर्माण स्थल से मशीनरी वाहनों और अन्य सामग्रियों को वापस भेज दिया। किसानों द्वारा हाल ही में आंदोलन स्थगित करने के बाद बांध पर काम फिर से शुरू हुआ है।  हालांकि सामग्री की कमी के कारण कार्य बहुत धीमी गति से चल रहा है। आंदोलन से पहले 35 से 40 डंपर मिट्टी और मुरुम का 12 घंटे तक परिवहन करते थे। वर्तमान में हड़ताल खत्म होने के बाद चार से पांच डंपर से ही ठेकेदार कार्य चला रहा है, जबकि बांध के लिए लाखों टन मुरुम की आवश्यकता है। 

    पाइपलाइन का निर्माण कार्य शुरू

    पानी की पाइपलाइन का निर्माण कार्य शुरू हो गया है और हेड रेगुलेटर (पाट नहर) का काम जारी है। जामफल बांध से पानी की निकासी नहीं होनी चाहिए, इसलिए बांध के निर्माण में काली मिट्टी का उपयोग किया जा रहा है।  हालांकि, किसानों को मुआवजा नहीं मिलने के कारण खेतों से काली मिट्टी को किसान नहीं निकालने दे रहे हैं। नतीजतन, ठेकेदार को काली मिट्टी और मुरुम नहीं मिल रही है। जिला प्रशासन की उदासीनता के कारण किसानों की क्षतिपूर्ति  प्रक्रिया को कोरोना के कारण रोक दिया गया है। परियोजना को समय पर पूरा करने के लिए किसानों को भुगतान कर खेत से मिट्टी उठाने का काम शुरू करना आवश्यक है। फिर भी संबंधित अधिकारियों की लापरवाही के कारण मुआवजे का भुगतान नहीं करने से परियोजना के कार्य में देरी हो रही है।

    2022 तक परियोजना का कार्य पूर्ण होना अनिवार्य

    2022 तक परियोजना को पूरा करना अनिवार्य है, लेकिन बांध का कार्य कछुआ गति से होने के कारण यह संभव नहीं लग रहा है। अभी 58 लाख घनमीटर मुरुम की आवश्यकता है। अब तक केवल 10 से 12 लाख घनमीटर मुरुम मिला है। इसके अलावा 150 लाख घनमीटर काली मिट्टी में से केवल 22 से 25 लाख घनमीटर ही मिट्टी मिली है। परियोजना के लिए लगभग 550 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना है। मूल बांध के लिए 60 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाना अभी बाकी है। सोनगीर इलाके में  48 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया गया है।

    सांसद सुभाष भामरे और विधायक जयकुमार रावल ने बढ़-चढ़कर इस परियोजना का श्रेय लिया था। किसानों को मुआवजा दिलाने में दोनों नेताओं ने तत्परता नहीं दिखाई। इसके चलते 452 हेक्टेयर भूमि का अधिकार भी लटका हुआ है। परियोजना को युद्ध स्तर पर पूरा कराने के लिए तत्काल भूमि अधिग्रहण कर किसानों का मुआवजा देना चाहिए, ताकि समय पर परियोजना पूरी हो सके।

    -संदीप राजपूत, किसान