Representational Pic
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कोरोना वायरस के संक्रमण ने सभी को हिलाकर रख दिया है. कोरोना के संक्रमण से बचने मार्च माह से लॉकडाउन की मार देश की जनता झेल चुकी है. अब अनलॉक-1 के तहत धीरे-धीरे सबकुछ पटरी पर लाने की दिशा में पहल की गई है. इस बीच स्कूल और छात्र-छात्राओं की पढ़ाई की समस्या गंभीर हो गई है. उपरोक्त समस्या को लेकर भतीजे ने चाचा से कहा कि लॉकडाउन के लागू होने के पूर्व में जिस तरह से हर आयु वर्ग का बच्चा स्कूल और पढ़ाई को लेकर बिंदास हुआ करता था. अब वह दिन कब आएंगे इसका कोई पता नहीं है. आज स्थिति यह है कि स्कूलों में स्थिति पूर्ववत होने को लेकर असमंजस है. स्कूलें शुरू करने को लेकर न तो शासन, शिक्षण मंडल और न ही स्कूल व्यवस्थापन ठोस निर्णय ले पा रहे हैं. ऐसे में बच्चों की शिक्षा को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.

इस पर चाचा ने कहा कि स्कूल और कालेज में जाने से बच्चे जिस तरह अनुशासित होते हैं. उसके मुकाबले ऑनलाइन शिक्षा का कोई भरोसा नहीं है. भलेही आज मजबूरी में सभी को ऑनलाइन शिक्षा का सहारा लेना पड़ रहा है. मगर नागपुर सहित महाराष्ट्र में शिक्षित वर्ग को छोड़ दिया जाये तो मध्यम और गरीब वर्ग के बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा पध्दति सुविधाजनक नहीं कही जा सकती. वर्तमान युग आधुनिक तकनीकी के साथ चलने का है. वहीं दूसरी ओर शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी बच्चों को पर्याप्त आधुनिक उपकरण उपलब्ध नहीं हो पाए है. एंड्राइड मोबाइल का जमाना जरूर है, मगर इसका उपयोग मनोरंजन के लिए अधिक हो रहा है. इस बात से सभी अवगत हैं. ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा के विकल्प को अस्थायी तौर पर लागू कराया जा सकता है. इस बात पर भतीजे ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा छोटे बच्चों के लिए नुकसानदेह होने की बात सभी स्वीकार कर रहे हैं.

नेत्र विशेषज्ञ से लेकर अन्य डाक्टर तक छोटे बच्चों के लिए मोबाइल का ज्यादा उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने की बात कह चुके हैं. ऐसे में 8 वीं और उसके आगे की पढ़ाई के लिए बतौर विकल्प ऑनलाइन शिक्षा का उपयोग किया जा सकता है. ई-लर्निंग से कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम का खतरा बच्चों में बढ़ गया है. शहर सहित पूरे राज्य की बड़ी-बड़ी स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा शुरू कर दी है. इसके चलते ई-लर्निंग के जरिए बच्चों को घर बैठे ही ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा है. ऑनलाइन शिक्षा के जरिए छात्रों की पढ़ाई को निरंतर जारी रखने पर जोर दिया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन शिक्षा बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित होती जा रही है. ऐसे में स्कूली शिक्षा को लॉकडाउन के पूर्व की स्थिति में कैसे लाया जा सकता है, इस पर गंभीरता से काम करना जरूरी हो गया है.