देश में कोरोना वायरस कि वजह से हालात ऐसे हो गए हैं, की लोग अपने घरों से निकलने में भी डर रहे हैं. लोग इस कोशिश में हैं की वे किसी अन्य व्यक्ति के संपर्क में आने से कैसे बचें. ऐसे में ये पहली बार है जब इस्लाम धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार ईद उल-अज़हा इतने फीके अंदाज़ में मनाया जा रहा है. महामारी की वजह से इस बार न तो ईद के बाज़ारों में वो रौनक है और ना ही लोग एक दूसरे से गले मिलकर ईद की मुबारकबाद दे पाएंगे.
वहीं इस महामारी के बीच सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की हिदायत दी है. खासकर ईद जैसे धार्मिक त्यौहार पर कोरोना के फैलने के डर से मस्ज़िद और ईदगाह में सामूहिक नमाज़ पर भी रोक लगा दी गई है. सरकार ने यह भी आग्रह किया है की सभी लोग घरों में रह कर ही ईद कि नमाज़ अदा करें और सावधानी बरतें.
बकरीद का महत्व:
पूरे विश्व में बक़रीद का बहुत महत्व है. इस्लाम धर्म के मुताबिक यह त्यौहार त्याग और बलिदान को दर्शाता है. इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 12वें महीने की 10 तारीख को ईद-उल-अज़हा मनाई जाती है. बक़रीद रमज़ान महीना खत्म होने के लगभग 70 दिन के बाद मनाई जाती है, जो कि मीठी ईद के बाद मुस्लिम समाज का प्रमख त्यौहार है.
बक़रीद पर कुर्बानी का महत्व:
इस्लाम धर्म में बक़रीद का त्यौहार बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. इस्लामिक मान्यताओं के मुताबिक, अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उनसे उनकी सबसे प्यारी और अज़ीज़ चीज़ की कुर्बानी मांगी थी और हज़रत इब्राहिम के लिए सबसे प्रिय उनके बेटे हज़रत इस्माइल थे. फिर भी हज़रत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म को मानते हुए अपने बेटे को कुर्बान करने तैयार हो गए. कहा जाता है, कि हज़रत इब्राहिम ने आँखें बंद करके जैसे ही अपने बेटे की गर्दन पर छुरी चलाई तो अल्लाह ने उनके बेटे की जगह दुंबा भेज दिया. इस तरह अल्लाह ने उनके बेटे की जान बक्श दी और दुंबा कुर्बान हो गया. जिसके बाद से ही बकरे की कुर्बानी देने का सिलसिला शुरू हो गया. कुर्बानी के गोश्त को 3 हिस्सों में बांटा जाता है, जिसमें एक हिस्सा गरीबों, दूसरा रिश्तेदारों और तीसरा हिस्सा अपने लिए रखा जाता है.
ऑनलाइन हुई बकरों की खरीद:
कोरोना वायरस और कई जगहों पर लॉकडाउन की वजह से, इस बार बकरों की ख़रीदी ऑनलाइन माध्यम से की गई. ऑनलाइन वेबसाइट्स पर बकरों की नस्ल कि जानकारी के साथ उनकी तस्वीरें भी शेयर की जा रही हैं. साथ ही बकरों की होम डिलीवरी भी की जा रही है. जहां बकरों की कीमत लाखों तक पहुंच गई है.
-मृणाल पाठक