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    उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)  में महिलाएं वट सावित्री (Vat Savitri) की पूजा हर साल करती है। उत्तर प्रदेश में वट सावित्री की पूजा की अलग ही रौनक देखी जाती है। यह पूजा महिलाएं पानी पति की दीर्घ आयु से लिए करती है। इस व्रत को कुंवारी लड़कियां भी रखती है। यह पूजा और व्रत का बहुत महत्व माना जाता है। इस बार यह व्रत 10 जून को पड़ेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन रखा जाता है। इस साल के वट सावित्री की पूजा के दिन सूर्य ग्रहण (Surya Grahan) और शनि जयंती (Shani Jayanti) भी है। पुराण कथाओं के अनुसार इस दिन सावित्री नामक पतिव्रता स्त्री ने अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवित करवाया था।

    यह व्रत क्यों और कब मनाया जाता है?

      व्रत को ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अपने मृत पति को पुन: जीवित करने के लिए सावित्री ने यमराज से याचना की थी जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें उनके पति सत्यवान के प्राण लौटा दिए थे। इसी के साथ यमराज ने सावित्री को तीन वरदान भी दिए थे। इन्हीं वरदान को मांगते हुए सावित्री ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर अपने पति को जीवित करवा दिया था। बताया जाता है कि यम देवता ने सत्यवान के प्राण चने के रूप में वापस लौटाए थे। सावित्री ने इस चने को ही अपने पति के मुंह में रख दिया था जिससे सत्यवान फिर से जीवित हो उठे थे। यही वजह है कि इस दिन चने का विशेष महत्व माना गया है और महिलाएं इस को मानकर अपने पति की दीर्घ आयु के लिए यह व्रत रखती है। 

    जानिए मुहूर्त   

    अमावस्या तिथि का प्रारम्भ 9 जून 2021 को दोपहर 01:57 बजे से होगा और इसकी समाप्ति अमावस्या तिथि पर 10 जून 2021 को शाम 04:22 बजे पर होगी। उदया तिथि में अमावस्या तिथि 10 जून को है इसलिए यह व्रत 10 जून को करना ही शुभ है।

    इस व्रत में पूजा की विधि 

    सुबह-सुबह महिलाएं जल्दी उठकर स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें। फिर सम्पूर्ण श्रृंगार करें। इसके बाद एक बांस या फिर पीतल की टोकड़ी में पूजा का सारा सामान रख लें और घर में ही पूजा करें। पूजा के बाद भगवान सूर्य को लाल पुष्प के साथ तांबे के बर्तन से अर्घ्य दें। इसके बाद घर के पास मौजूद वट वृक्ष पर जाएँ। वट वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें। देवी सावित्री को वस्त्र और श्रृंगार का सारा सामान अर्पित करें। पेड़ पर फल व पुष्प अर्पित करें। फिर वट वृक्ष को पंखा झेलें। इसके बाद रोली से वट वृक्ष की परिक्रमा करें। अंत में सत्यवान-सावित्री की कथा करें या सुनें। साथ ही पूरे दिन व्रत रखें। कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकालकर उस पर कुछ रुपए रखकर सास को देने की भी प्रथा है। इस दिन ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें। 

    इन सब चीजों से अपना वट सावित्री के व्रत को विधि-विधान से पूरा करें।