दीपावली के ये पांच दिन जानें क्यों होते हैं खास, पढ़ें पौराणिक कथा

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हिन्दुओं के लिए दीपावली प्रमुख त्यौहार है। इस पर्व को 5 दिनों तक मनाया जाता है। उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अलग-अलग विधि-विधान से पूजा की जाती है। उत्तर भारत में यह त्यौहार 5 दिन का होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी, मुख्य पर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होता है। जबकि दक्षिण भारत में दिवाली के 1 दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाई जाने वाली दिवाली दक्षिण भारत का सबसे प्रमुख दिन होता है। 

दिवाली पर घर की स्वछता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दौरान घरों की रंगाई की जाती है। दीप जलाना, रंगोली बनाना, माता लक्ष्मी की पूजा करना, मिठाई बांटना, अच्छे-अच्छे पकवान बनाना और नई-नई वस्तुएं खरीदने का महत्व रहता है। साथ ही नए-नए कपड़े पहनकर मित्रों और परिवार के साथ यह पर्व मनाया जाता है।   

1. पहला दिन : धनतेरस

पहले दिन को धनतेरस कहते हैं। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसे ‘धन त्रयोदशी’ भी कहते हैं। इस साल धनतेरस 12 नवंबर को है।धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा का विशेष महत्व है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। तभी से इस दिन का नाम ‘धनतेरस’ पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई।

2. दूसरा दिन : नरक चतुर्दशी

दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस कहते हैं। इस साल नरक चतुर्दशी 13 नवंबर को है। इसी दिन नरकासुर का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने 16,100 कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उबटन एवं स्नान करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन से एक ओर मान्यता जुड़ी हुई है जिसके अनुसार इस दिन उबटन करने से रूप व सौंदर्य में वृद्ध‍ि होती है।

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 3. तीसरा दिन : दीपावली

तीसरे दिन को ‘दीपावली’ कहते हैं। यही मुख्य पर्व होता है। दीपावली का पर्व विशेष रूप से मां लक्ष्मी के पूजन का पर्व होता है। कार्तिक माह की अमावस्या को ही समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं जिन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य और सुख-समृद्धि की देवी माना जाता है। अत: इस दिन मां लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं ताकि अमावस्या की रात के अंधकार में दीपों से वातावरण रोशन हो जाए।

 दूसरी मान्यता के अनुसार पिता की आज्ञा पर 14 वर्ष का वनवास पूरा कर भगवान रामचन्द्रजी माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ घर लौटे थे। अयोध्यावासियों ने श्रीराम के स्वागत हेतु घर-घर और नगरभर खुशी के दिप जलाए, तभी से दीपावली के दिन दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई। 5 दिवसीय इस पर्व का प्रमुख दिन लक्ष्मी पूजन अथवा ‘दीपावली’ के तौर पर मनाया जाता है।

4. चौथा दिन : गोवर्धन पूजा

चौथे दिन अन्नकूट या गोवर्धन पूजा होती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट उत्सव मनाना जाता है। इसे पड़वा या प्रतिपदा भी कहते हैं। इस दिन  पालतू पशुओं बैल, गाय, बकरी आदि को स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है। घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन बना कर पूजा की जाती है, और   पकवानों का भोग लगाया जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन इन्द्रदेव ने गोकुलवासियों से नाराज होकर बारिश-तूफान शुरू कर दिया था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांववासियों को सुरक्षित किया। तभी से इस दिन गोवर्धन पूजन की परंपरा भी चली आ रही है।

5. पांचवां दिन : भाई दूज

पांचवे दिन को ‘भाई दूज’ और ‘यम द्वितीया’ कहते हैं। यह दिवाली का अंतिम दिन होता है। भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने और भाई की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। भाई दूज पर बहन अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे तिलक कर भोजन कराती है और उसकी लंबी उम्र की कामना करती है।

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कथा के अनुसार इस दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने उनके घर आए थे और यमुनाजी ने उन्हें स्नेहपूर्वक भोजन कराया एवं यह वचन लिया कि इस दिन हर साल वे अपनी बहन के घर भोजन के लिए आएंगे। साथ ही जो बहन इस दिन अपने भाई को आमंत्रित कर तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी। तभी से भाई दूज पर यह परंपरा चली आ रही है।