Sankashti Chaturthi

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आज कष्टों को हराने वाली और जीवन में खुशहाली लाने वाली संकष्टी चतुर्थी है. इस दिन विघ्न हरता, गौरी पुत्र श्री गणेश की विधि विधान से पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश चतुर्थी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. श्री गणेश प्रथम पूजनीय देवता हैं, इसलिए किसी भी शुभ कार्य या पूजा से पहले सर्वप्रथम उनका पूजन किया जाता है.

क्यों मनाई जाती है ये चतुर्थी?
संकष्टी चतुर्थी मनाने के पीछे यह कथा प्रचलित है कि, एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव नदी किनारे बैठे थे. अचानक माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ लेकिन वहां तीसरा कोई भी व्यक्ति नहीं था जो हार जीत का फैसला कर सके. इसलिए भगवान शंकर और माता पार्वती ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान फूंक दी और उससे चौपड़ खेल में हार जीत का फैसला करने को कहा. खेल चालू हो गया और माता पार्वती विजयी हुई. यह खेल लगातार तीन से चार बार चला और हर बार माता पार्वती को ही विजय प्राप्त हुई.

लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती की जगह शिव जी को विजयी घोषित कर दिया. इस पर माता पार्वती क्रोधित हो गई और बालक को लंगड़ा होने का श्राप दे दिया. जिसके बाद बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और श्राप वापस लेने को कहा, लेकिन माता पार्वती ने कहा श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता परंतु एक उपाय है जो तुम्हें इस से मुक्ति दिला सकता है. उपाय बताते हुए माता गौरी ने कहा कि इस जगह संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं. तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को करना. बालक ने वैसा ही किया जैसा माता ने कहा था. बालक की पूजा से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और बालक की मनोकामना पूरी की.

पूजन विधि:
संकष्‍टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान कर लें और सूर्य को अर्घ्य दें. फिर एक चौकी या मंदिर में लाल वस्त्र बिछाएं और कलश की स्थापना करें. वहा भगवन गणेश जी की मूर्ति को विराजें. उन्हें जल अर्पित करें, हल्दी कुमकुम का तिलक करें और पीले वस्त्र अर्पित करें. पीले फूलों की माला और उन्हें दूर्वा अर्पित करें. मोदक व् अन्य मिठाईयों और हरे फल का भोग लगाएं. गणेश वंदना से शुरुआत कर अपनी पूजा प्रारम्भ करें और आरती के साथ संपन्न करें. शाम के समय फिर से गणेश पूजन करें और चन्द्रमा् को अर्घ्य दे. भगवान् गणेश को भोजन, मिठाई का भोग लगाएं और व्रत का पारायण करें.

महूर्त: 7 अगस्त को रात्रि 12:14 से 8 अगस्त को रात्रि 2:06 बजे तक है.
संकष्टी के दिन चन्द्रोदय रात 09:38 पर होगा.

-मृणाल पाठक