अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस : पीरियड्स, मर्दों को क्यों समझनी चाहिए महिलाओं की पीड़ा?

अंतरराष्ट्रीयमहिला दिवस पर सभी अपनीमां, पत्नी, बेटी और दोस्त को महिला दिवस की शुभकामनाएं देते है। लेकिन क्या सिर्फ महिलाओं को शुभकामनाएं देकर इस दिन को मनाने से महिला दिवस पूरा होता है?

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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी अपनी मां, पत्नी, बेटी और दोस्त को महिला दिवस की शुभकामनाएं देते है। लेकिन क्या सिर्फ महिलाओं को शुभकामनाएं देकर इस दिन को मनाने से महिला दिवस पूरा होता है? आज भी बहुतांश लोग महिलाओं को समझ नहीं पाते है। महिलाएं जब अपने पीरियड्स (मासिक धर्म) से झूझती रहती है तब उसकी पीड़ा कोई नहीं समझ पाता। अपनी मां, पत्नी, बेटी और दोस्त के पीरियड्स के दौरान की पीड़ा पर गौर करें उनकी मदद करें, उनका मानसिक रूपसे आधार बने। अगर आप महिलाओं के पीरियड्स के बारें में नहीं जानते तो इसके बारें सही जानकारी अवश्य लें।

आज भी कई लड़कियों को पीरियड्स के बारें में सही जानकारी उपलब्ध नहीं है जिससे वह बिमारियों का शिकार हो रही है। इस बारें में सही जानकारी सभी लड़कियों को होनी चाहिए। बढ़ती उम्र में होने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों को युवा लड़कियों ने अपनाना जरुरी है।

क्या है पीरियड्स? ये महिलाओं को क्यों आते है?
लड़कियों में जब शारीरिक बदलाव होते है तब पीरियड्स की शुरुआत होती है। लड़कियों में शारीरिक बदलाव 11 साल की उम्र से होता है। इसी दौरान  पीरियड्स की शुरुआत होती है। यह आगे-पीछे यानी 11 से 15 वर्ष की उम्र तक पीरियड्स की शुरुआत हो सकती है।

दरसल पीरियड्स शुरू होना काफी महत्वपूर्ण है। यह गर्भधारण (Pregnancy) करने में मदद करता है। पीरियड्स शुरू होने पर हर महीने महिलाओं के दो अंडाशयों में से एक अंडा बनके गर्भाशय नाल में रिलीज करता है। शरीर दो तरह के हॉर्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टरोन बनता है। यह हॉर्मोन्स गर्भाशय की परत (जो रक्त और म्यूकस से बनती है) को मोटा करते है। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भाधान होने पर फर्टिलाइज़्ड अंडा उस परत से लग कर पोषण पा सके। जब अंडा नर शुक्राणु से मिलकर फर्टिलाइज़ नहीं हो पाता तब गर्भाशय की परत उस अंडे के साथ रक्त के रूप में योनि से बाहर निकल आती है। इस पूरी क्रिया पीरियड्स कहा जाता है।

पीरियड्स 28 से 32 दिनों में एक बार आते है। ज्यादातर पीरियड्स का समय 3 से 5 दिनों का होता है। लेकिन 2 से सात दिनों तक के समय को सामान्य माना जाता है।

पीरियड्स के दौरान महिलाओं को क्यों होती है पीडा?
कष्टार्तव (डिसमेनोरीया/Dysmenorrhea) होने पर महिलाओं के पेट के निचले भाग में काफी पीडा होती है। यह पीडा पीरियड्स शुरू होने के कुछ दिन  पहले से ही शुरू होती है। यह पीडा 1 से 3 दिनों तक होती है। बहुधा महिलाएं अपने घर में रोज का काम नहीं कर पाती। इसके अलावा स्कूली लड़कियों को भी काफी पीडा होती है। जिससे उनको स्कूल से छुट्टी लेकर घर लौटना पड़ता है।

गौर करने वाली बात यह है कि पीरियड्स के दौरान पीडा होना सामान्य बात नहीं हैं। ज्यादा पीडा होने से एन्डोमीट्रीओसिस (Endometriosis) जैसी बीमारी भी हो सकती है। अगर पीडा ज्यादा हो तो महिला/लड़की को डॉक्टर से अपनी जांच करानी चाहिए।

महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होनेवाली पीडा को समझे
महिलाओं को पीरियड्स आने से पहले काफी पीड़ा होती है। इस दौरान महिलाओं से सौम्य व्यवहार करे उनकी तकलीफ को समझे। महिला इस दौरान काफी तकलीफ सहती है। इस दौरान महिलाओं को आराम की जरुरत होती है। इसके साथ ही पीरियड्स के दौरान महिलाओं को मानसिक आधार की भी काफी जरूरत होती है।

कई लोग महिलाओं को पीरियड्स को बुरा मानते है। आज भी कई लोग अपने घर की महिलाओं से दुर्व्यवहार करते है। पीरियड्स के दौरान महिलाओं को मंदिर, रसोई घर में जाने से मना किया जाता है। इतना ही नहीं पीरियड्स के दौरान महिलाओं के पति उनके साथ एक बिस्तर पर नहीं सोते। महिलाओं के साथ अछूत जैसा व्यवहार होता है जिसके कारण महिलाओं को मानसिक तौर पर और भी तकलीफ पहुंचती है।

आज भी पढ़े लिखे लोग पीरियड्स को अपशकुन मानते है। ऐसे कई लोगों के घरों में आज भी महिलाओं के लिए पीरियड्स के दौरान अलग खोली होती है। जहां उन्हें जब तक पीरियड्स खत्म नहीं होते तब तक रखा जाता है। उन्हें किचन में आकर पानी तक लेने की आज़ादी नहीं होती। उन्हें दूर से ही पानी दिया जाता है। काफी महिलाएं यह सोचती है कि महिलाओं के लिए पीरियड्स वरदान है या श्राप? 

आज के युग में भी महिलाओं के साथ तुच्छ व्यवहार और निचली दर्जा का व्यवहार होना बहुत ही शर्म की बात है। महिलाएं आज मर्दों के कंधे से कंधा  मिलाकर आगे बढ़ रही है और अलग-अलग क्षेत्रों में सफलताएं हासिल कर रही है, अपने देश का नाम रोशन कर रही है।