chhath puja 2023
फ़ाइल फोटो

Loading

Chhath Puja 2020:  बिहार, झारखंड और पूर्वांचल क्षेत्र में ‘छठ महापर्व’ घूम-धाम से मनाया जाता है। नहाय-खाय के साथ छठ पर्व की शुरुआत होती है।  इसके अगले दिन खरना या लोहंडा (Kharna or lohanda) मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत करती हैं। शाम को मां छठ मइया को गन्‍ने के रस से बनी खीर-पूरी का भोग लगाया जाता है।  प्रसाद को ग्रहण कर महिलाएं इस दिन का व्रत तोड़ती हैं। तीसरे दिन महिलाएं फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखकर सांझ घाट पर जाती है, जहां डूबते सूर्य की पूजा अर्चना के साथ अर्घ्‍य दिया जाता है। चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद छठ व्रत का परायण किया जाता है। तो चाहिए जानते हैं छठ मईया का भगवन सूर्य से क्या नाता है। आखिर वो कौन हैं और सूर्य को अर्घ्‍य देने का वैज्ञानिक आधार क्‍या है?

कौन है छठ मइया? 

कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ महापर्व मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्‍ल पक्ष के छठे दिन पूजी जाने वाली षष्ठी मइया (Sasthi Maiya) को बिहार में आसान भाषा में छठी मइया (Chhathi Maiya) कहते हैं। मान्यता के अनुसार छठी मइया भगवान सूर्य की बहन हैं। इसी कारण भगवान  सूर्य को अर्घ्य देकर छठ मैया को प्रसन्न किया जाता है। वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार मां दुर्गा के छठे रूप ‘कात्यायनी देवी’ को भी छठ माता का ही रूप माना जाता है। छठी माता को संतान सुख का आशीर्वाद देने वाली माता के रूप में जाना जाता है। संतान के लिए छठ पर्व मनाया जाता है। संतान की कामना रखने वाले दंपत्ति को संतान प्राप्ति के लिए छठी मइया की पूजा करना बहुत फलदायी माना जाता है। 

 

सूर्य को अर्घ्‍य देने का वैज्ञानिक महत्व ?

वैज्ञानिक तत्थों के अनुसार सूरज की किरणों से हमें विटामिन ‘डी’ मिलता है और उगते सूर्य की किरणें बहुत फायदेमंद होता हैं। इसलिए सदियों से सूर्य नमस्कार को लाभकारी माना गया है। भारतीय योग विद्या में भी सूर्य नमस्‍कार का बहुत महत्‍व है। दूसरी ओर, विज्ञान की बात करें तो प्रिज्म के सिद्धांत के अनुसार सूरज की सुबह की किरणों से मिलने वाले विटामिन डी से प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है और त्‍वचा से संबंधित परेशानियां खत्म हो जाती हैं।