सेक्स के दौरान अब प्रिकॉशन लेने की चिंता नहीं, अनचाहे गर्भ को रोकने वैज्ञानिकों ने खोजा नया तरीका

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    नई दिल्ली: बर्थ कंट्रोल के कई तरीके उपलब्ध हैं लेकिन ज्यादातर लोग कंडोम और दवा को ही सबसे आसान और प्रभावी गर्भनिरोधक मानते हैं। लेकिन कई ऐसे लोग भी है जो प्रेगनेंसी नहीं चाहते हैं, साथ ही किसी भी प्रोटेक्शन का भी इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं। कुछ महिलाएं अनचाहे गर्भ को रोकने के लिए गोलियों का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन कुछ साइड इफेक्ट के कारण उसे लेने से डरती हैं।

    दुनिया में ऐसी प्रेग्नेंसी ज्यादा है, जो बिना प्लानिंग की है। इस बीच अब वैज्ञानिकों ने बर्थ कंट्रोल करने का एक नया तरीका खोजा है। जिसे कोई भी बेझिझक और आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। खास बात यह है कि वैज्ञानिक इन गर्भ निरोधकों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से बना रहे हैं। उनका दावा है कि यह गर्भनिरोधक महिलाओं के हार्मोन में बिना किसी बदलाव के बेहतर काम करेगा। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इम्यून सिस्टम के माध्यम से शुक्राणु पर हमला करते हैं।

    साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन और ईबीओमेडिसिन पत्रिका में इस कॉन्ट्रासेप्टिव मेथड के बारे में विस्तार से बताया गया है। स्टडी के अनुसार मोनोक्लोनल एंटीबॉडी स्पर्म को पकड़कर उन्हें बहुत कमजोर कर देती हैं। स्टडी में ये भी जानने की कोशिश की गई क्या इसका इस्तेमाल गर्भनिरोधक के तौर पर किया जा सकता है? और इसे वजाइना में डालना कितना सुरक्षित है? 

    मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को Covid-19 के इलाज में भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। स्टडी के लेखक एंडरसन के अनुसार ये एंटीबॉडीज स्पर्म को बांधकर रखने में काफी कारगर पाई गई हैं। एंडरसन का कहना है कि ये कॉन्ट्रासेप्टिव एक पतली झिल्ली की तरह होगी जो बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के मेडिकल स्टोर से खरीदी जा सकेगी। ये पूरे 24 घंटे तक अपना काम करेगी। 

    एंडरसन ने कहा, मुझे लगता है की यह उन महिलाओं में ज्यादा लोकप्रिय होगा जो कभी कभार सेक्स करती है। ऐसी महिलाएं गोलियों जैसी दवाओं के सेवन से बचती हैं जिनका हार्मोन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। उन्हें निश्चित रूप से एक ऐसे उत्पाद (प्रोडक्ट) की आवश्यकता होती है जिसका उपयोग वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कर सकें।

    वैज्ञानिकों के एक समूह ने इन एंटीबॉडी को भेड़ों में गर्भ निरोधकों के रूप में इस्तेमाल किया। अध्ययन में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी नेचुरल एंटीबॉडी की तुलना में शुक्राणु पर अधिक प्रभावी और शक्तिशाली पाए गए। वहीं, एंडरसन की टीम ने इसकी डोज और सुरक्षा को समझने के लिए कुछ महिला स्वयंसेवकों पर क्लिनिकल परीक्षण किया।

    क्लिनिकल ट्रायल के पहले चरण में 9 महिलाओं को एक हफ्ते तक रोजाना योनि में एंटीबॉडी का इंजेक्शन लगाया गया। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने 29 महिलाओं पर एक प्लेसबो अध्ययन भी किया। इसके लिए इन महिलाओं को ऐसी झिल्ली दी गई जिसमें एंटीबॉडीज नहीं थीं।  शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी ग्रुप वाली महिलाओं का वजाइनल पीएच, प्लेसबो ग्रुप वाली महिलाओं के बराबर ही पाया। एंटीबॉडी समूह में महिलाओं की योनि का पीएच प्लेसीबो समूह की महिलाओं के समान होता है। मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लगाने वाली महिलाओं में भी बैक्टीरियल इंफेक्शन नहीं पाया गया। 

    ट्रायल में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी सुरक्षित और 24 घंटे तक महिलाओं में एक्टिव पाई गई। हालांकि, पुख्ता जानकारी के लिए शोधकर्ताओं को सेक्सुअली एक्टिव महिलाओं के एक बड़े ग्रुप पर इसका ट्रायल करने की जरूरत है। इसके अलावा शोधकर्तोओं ने एक और एंटीबॉडीज पर काम करना शुरू कर दिया है जिसे पुरुषों के कॉन्ट्रासेप्टिव जेल की तरह इस्तेमाल किया जाएगा। पुरुषों के लिए यह कंडोम और नसबंदी से अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।