‘टेक्नोलॉजी’ कर रही काम, हार्ट अटैक के बारे में पांच साल पहले करना चाहती है मरीज़ों को सावधान

हृदय हमारे जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, इसके बिना जीवन ही असंभव है। हृदय संबंधी जागरूकता फैलाने के लिए पूरे विश्व में हर साल 29 सितंबर को हृदय दिवस मनाया जाता है। इस आयोजन की पहल विश्व हृदय संघ के निदेशक ने 1999 में आंटोनी बेस दे लुना ने डब्ल्यूएचओ (WHO) के साथ मिलकर की थी।

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दिल की बीमारी इतनी खतरनाक होती है की इंसान की जान ले लेती है। भारत में दिल के मरीज़ों की संख्यां दिन- प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। वहीं इससे अब इंसान नहीं तकनीक (Technology) भी लड़ रही है। जिससे ये पता लगाया जा सके की किसी भी व्यक्ति को हार्ट अटैक होने के कितने चांसेस हैं। यह तकनीक दिल की बीमारी से सफर कर लोगों के लिए बहुत लाभकारी साबित हो सकती है। 

इस टेक्नोलॉजी से भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक की जानकारी मिल सकती है। साथ ही थी-डी प्रिंटिंग हार्ट से ट्रांसप्लांट के लिए लगी कतार को कम करने की कोशिश जारी है। इसके अलावा गूगल भी आंखों के ज़रिए दिल के मरीज़ों को पहले ही आगाह कर देगा कि दिल को कितना खतरा है और कितना नहीं। तो आज हम आपको इन्हीं सब बातों को लेकर बताने जा रहे हैं कि टेक्नोलॉजी आपको हृदय रोगों से बचाने के लिए कितना काम कर रही है।

काम पर हैं यह तकनीक-

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ऐसी टेक्नोलॉजी का विकास किया है जो आपको पांच साल पहले ही हार्ट अटैक के बारे में बता देगी। इस टेक्नोलॉजी में एक खास फीचर दिया गया है जो बायोमार्कर फिंगरप्रिंट है, उसे फैट रेडियोमिक प्रोफाइल (एफआरपी) का नाम दिया गया है। एफआरपी, रक्त धमनियों में मौजूद फैट का जेनेटिक एनालिसिस कर भविष्य में पैदा होने वाले खतरों को पहचानेगा। जिससे इस बात का पता चल जाएगी कि व्यक्ति को भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा हो सकता हैं या नहीं।

अमेरिका के मैसाचुसेट्स में ई-जेनेसिस स्टार्टअप के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए ऐसे पिग (सुअर) पैदा करने की कोशिश की जा रही है, जिनके अंग (दिल भी शामिल) आसानी से मानव में प्रत्यारोपित किए जा सकें। ऐसा होने पर दिल के रोगों से होने वाली एक तिहाई मौतों को कम किया जा सकेगा। मानव शरीर में जानवरों के दिल के प्रत्यारोपण को लेकर शोधकार्य सालों से चल रहे हैं। लेकिन इसमें सफलता इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि इंसान और जानवर के दिल में अंतर होते हैं। 

इजरायल में तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक 3डी प्रिंटर के ज़रिए ऐसा मिनी दिल तैयार किया है, जो बिलकुल वैसा ही है जैसा किसी प्राणी के शरीर में होता है। इसके निर्माण में मानव की कोशिकाओं और बायोलॉजिकल सामान का इस्तेमाल किया गया है। वहीं यह बस 2.5 सेंटीमीटर का ही है, लेकिन इंसानों के दिल लगभग 12 सेंटीमीटर होता है। मिनी दिल को भविष्य में इसके आकार को प्रिंट करने की तैयारी चल रही है। इस मिनी दिल के अलावा भी पहले कई कृत्रिम हृदय बना चुके हैं, लेकिन उन हृदय को साधारण ऊतकों (टिशूज़) के ज़रिए बनाया गया था, उनमें रक्त धमनियां भी नहीं थीं।  

इन सबके अलावा अमेरिका की रेपथा कंपनी भी इस टेक्नोलॉजी पर काम कर रही है। इस कंपनी ने इवोलोक्यूमैब मूल दवा बनाई है जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने का काम करती है। यह दवा उन मरीज़ों के काम में आएगा जिनका LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल) काफी बढ़ा होता है और दवाइयों से काबू में नहीं आता।  

रोचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में वैज्ञानिक निकोलस कॉन ने एक ऐसा इक्विपमेंट बनाया है, जो टॉयलेट सीट में फिट किया जाएगा। ताकि इसमें लगा सेंसर्स रोगियों की जांघ के पिछले हिस्से में ब्लड ऑक्सिजीनेशन को जाँच कर उनके हृदय से जुड़ी सूचना को इकठ्ठा करेगा।