‘होलिका दहन’ में गलती से भी न जलाएं इन पेड़ों की लकड़ी, नाराज हो जाएंगे भगवान

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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक ‘होलिका दहन’ (Holika dahan) इस साल 17 मार्च, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा। हर साल फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन (Holika dahan) के कुछ दिन पहले से ही लोग दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करना शुरू कर देते है। होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है।

    लेकिन, क्या आप जानते हैं कि होलिका दहन के लिए लकड़ियों का चुनाव बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए ? जी हां, दरअसल कुछ पेड़ ऐसे भी होते हैं, जिनका इस्तेमाल होलिका दहन में नहीं करना चाहिए। आइए जानें उन पेड़ों के बारे में –

    मान्यता है कि, होलिका दहन के समय एरंड और गूलर की सूखी लकड़ियों का इस्तेमाल करना शुभ माना जाता है। कहते हैं कि, इस मौसम में गूलर की टहनियां खुद ही सूख कर गिर जाती हैं, इसलिए इसकी टहनियों का इस्तेमाल करना उत्तम रहता  है। इसके साथ ही, होलिका दहन में गाय के गोबर के उपले आदि का भी इस्तेमाल करना भी शुभ होता है।

    ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, भूल से भी पीपल के पेड़, शमी का वृक्ष, आम के पेड़, आंवले के पेड़, नीम के पेड़, केले के पेड़, अशोक के पेड़ और बेल के पेड़ की लकड़ियों का होलिका दहन में प्रयोग बिल्कुल भी न करें। इन पेड़ों का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसलिए होलिका दहन में इन पेड़ों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। साथ ही हरे-भरे पेड़ का भी होलिका दहन में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

    इसके अलावा, खर-पतवार को भी होलिका दहन में जलाया जा सकता है। इसकी वजह से अनावश्यक हरे पेड़ों को नहीं काटना पड़ेगा और खर पतवार को होलिका में जला देने से आसपास की सफाई भी हो जाएगी।