Ekadashi
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    -सीमा कुमारी

    आज सावन महीने की पहली एकादशी यानी, ‘कामिका एकादशी’ है। सभी एकादशी व्रतों में से ‘कामिका एकादशी’ (Kamika Ekadashi) को भगवान विष्णु का उत्तम व्रत माना जाता है, क्योंकि यह भगवान शिव के पावन और प्रिय महीने श्रावण में आता है।

    धार्मिक मान्यता है कि ‘कामिका एकादशी’ के दिन व्रत या उपवास रखने से सभी पाप मिट जाते हैं। हिंदू धर्म में ‘कामिका एकादशी’ को संसार में सभी पापों को नष्ट करने वाले उपायों में इसे सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पूजा के दौरान पीले वस्त्र, पीले कपड़ों से ढकी चौकी, पीले फूल और यथा संभव पीले रंग की ही पूजन सामग्री के उपयोग से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करने का वरदान देते हैं।

    इसलिए शास्त्रों में ‘कामिका एकादशी’ व्रत में पीले रंग का विशेष महत्व होता है। लेकिन ‘कामिका एकादशी’ के दिन कुछ विशेष कार्यों को नहीं करना चाहिए। आइए जानें वो कौन से ऐसे कार्य हैं, जो गलती से भी नहीं करना चाहिए।

    शास्त्रों के मुताबिक, ‘कामिका एकादशी’ के पावन दिन चावल का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। ऐसा  कहा जाता है कि  इस  दिन चावल खाने से मनुष्य का जन्म रेंगने वाले जीव की योनि में होता है। इस दिन व्रत नहीं रखने वालों को भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए। द्वादशी के दिन खाने चाहिए।

    ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, इस दिन संयम के साथ ब्रह्राचार्य का पालन करना चाहिए। एकादशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का दिन है, इस दिन भजन-कीर्तन करने चाहिए। ऐसा करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा भक्तों पर सदैव बनी रहती है।

    कहते हैं कि एकादशी के दिन भूलकर भी शाम के समय सोना नहीं चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। संध्या के समय पूजा में ‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करें और ‘कामिका एकादशी’ की व्रत कथा भी को सुनें। ऐसा करने से भक्तों को मनवांछित फल मिलते हैं। इसलिए ऐसा करना न भूलें।

    इस दिन भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्र अवश्य अर्पित करें। क्योंकि, ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है। और भक्तों की सभी कष्ट दूर करते हैं, और मनवांछित फल देते हैं।

    इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए। और मांस-मंदिरा का सेवन भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इसके अलावा, इस दिन क्रोध नहीं करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति से वाद- विवाद में नहीं उलझना चाहिए और वाणी में संयम बरतना चाहिए । और अपने से बड़े बुजुर्ग का अपमान भी नहीं करना चाहिए।