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    -सीमा कुमारी

    नौ दिनों तक चलने वाले ‘नवरात्रि’ का पावन त्योहार देशभर में पूरे हर्षोल्लाष के साथ मनाया जाता है। इस दौरान शक्ति की देवी मां दुर्गा के नौ रूपों की बड़ी श्रद्धा से पूजा होती है। इसकेअलावा, नवरात्रि के आठवें और  नौवें दिन पर अष्टमी और नवमी तिथि मनाई जाती है। इस दिन ‘कन्या पूजन’ करने का भी विशेष महत्व है।

    मान्यता है कि इससे देवी मां का आशीर्वाद मिलता है। इससे घर में सुख-शांति, खुशहाली का वास होता है। मगर ‘कन्या-पूजन’ के दौरान कुछ बातों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। ऐसे में आइए जानें कन्या पूजन के दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में –

    कब है अष्टमी-नवमी?

    अष्टमी तिथि 12 अक्टूबर रात 9 बजकर 47 मिनट से 13 अक्टूबर रात्रि 8 बजकर 6 मिनट तक रहेगी. जबकि नवमी तिथि 13.अक्टूबर रात 8 बजकर 7 मिनट से लेकर 14 अक्टूबर शाम 6 बजकर 52 मिनट तक रहेगी।

    कन्या पूजन में बालक भी जरूर शामिल करें

    ज्योतिष-शास्त्र के अनुसार, कन्या पूजन के दौरान नौ कन्याओं के साथ 1 बालक को भी बिठाया जाता है। बालक को बटूक भैरव का रूप माना जाता है। साथ ही देवी मां की पूजा के बाद बटूक भैरव की पूजा करने का विशेष महत्व है। इसलिए आप भी कंजक पूजा में एक बालक को जरूर स्थान दें। नहीं तो इनके बिना आपकी पूजा अधूरी मानी जाएगी।

    कन्याओं और बालक के घर के अंदर प्रवेश करने से पहले उनके पैर जरूर धोएं। इसके लिए एक लोटे में कच्चा दूध मिश्रित पानी लें। फिर उसे थोड़ा-थोड़ा कन्याओं और बालक के पैरों पर डालें। बाद में उसके पैर साफ कपड़े से पोंछे। फिर माता रानी के जयकारे लगाते हुए उन्हें घर के अंदर प्रवेश करवाएं। उसके बाद उनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लेते हुए उन्हें साफ आसन पर बिठाएं।

    ऐसे करें कन्या पूजन

    सबसे पहले देवी मां को कुमकुम का तिलक लगाएं। मौली, फूल, चावल अर्पित करें। कन्याओं के सिर पर लाल चुनरी रखें। हलवा, पुरी, चने, नारियल का भोग लगाएं। बाद में कन्याओं और बालकर को कुमकुम का तिलक लगाकर मौली बांधे। उन्हें प्रसाद खिलाएं।कन्या पूजन के बाद कन्याओं को फल, खिलौने आदि उपहार में दें। फिर अपनी इच्छा अनुसार, उन्हें दक्षिणा दें। माता रानी के जयकारे लगाते हुए उनके पैर छुकर आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करें। मान्यता है कि इस तरह कन्या पूजन करने से देवी मां की असीम कृपा मिलती है।