Ahoi Ashtami 2023

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-सीमा कुमारी

हिन्दू धर्म के अनुसार करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है जो हरे एक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष 8 नवंबर दिन रविवार को है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लम्बी और सुखी जीवन के लिए व्रत रखती हैं. यह व्रत मुख्यत: सूर्योदय से लेकर सूयोस्त के बाद तक होता है. शाम के समय में आकाश में तारों को देखकर व्रत का पारण किया जाता है. कुछ स्थानों पर माताएं चंद्रमा दर्शन के बाद पारण करती हैं.  आइए जानते हैं कि अहोई अष्टमी की तिथि, पूजा का मुहूर्त तथा पारण का समय-

अहोई अष्टमी की पूजा का मुहूर्त:

  • 8 नवंबर, रविवार की शाम 05 बजकर 26 मिनट से शाम 06 बजकर 46 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है. 
  • यानी पूजा की अवधि 1 घंटा 19 मिनट की है.  

अहोई अष्टमी की पूजा विधि:

  • करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई व्रत मनाया जाता है. 
  • गोबर से या चित्रांकन के द्वारा कपड़े पर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है और उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं. 
  • माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद शाम को उसकी पूजा करती हैं.
  • करवाचौथ में इस्तेमाल किए गए करवे में जल भर लिया जाता है.
  • शाम को माता की विधि-विधान से पूजा के बाद उन्हें फल, फूल और मिठाई भोग लगाते हैं. 
  • उसके बाद तारों को करवे से अर्घ्य देने के बाद रात में व्रत को तोड़ा जाता है. 
  • इसके बाद अहोई माता की व्रत कथा सुनने के बाद अन्न-जल ग्रहण किया जाता है. 
  • उस करवे के जल को दीपावली के दिन पूरे घर में छिड़का जाता है. 
  • मान्यता है कि अहोई माता की पूजा करके उन्हें दूध-चावल का भोग लगाना शुभ होता है.

अहोई अष्टमी की कथा:

एक साहूकार के 7 बेटे थे और एक बेटी थी. साहूकार ने अपने सातों बेटों और बेटी की शादी कर दी थी. अब उसके घर में सात बेटों के साथ सात बहुएं भी थीं. साहूकार की बेटी दिवाली पर अपने ससुराल से मायके आई थी. दिवाली पर घर को लीपना था, इसलिए सारी बहुएं जंगल से मिट्टी लेने गईं . साहुकार की बेटी भी अपनी भाभियों के साथ चल पड़ी. साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर  स्याहु अपने साथ बेटों से साथ रहती थी. मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया. इस पर क्रोधित होकर स्याहु ने कहा कि मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी. स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें. सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है. 

इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं, वे सात दिन बाद मर जाते हैं. सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा. पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी. सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और छोटी बहु से पूछती है कि तू किस लिए मेरी इतनी सेवा कर रही है और वह उससे क्या चाहती है? जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मुझ से मांग ले. साहूकार की बहू ने कहा कि स्याहु माता ने मेरी कोख बांध दी है जिससे मेरे बच्चे नहीं बचते हैं. अगर आप मेरी कोख खुलवा दें तो मैं आपका उपकार मानूंगी. गाय माता ने उसकी बात मान ली और उसे साथ लेकर सात समुद्र पार स्याहु माता के पास ले चली. रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं. अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है. 

इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है. छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है. गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है. वहां छोटी बहू स्याहु की भी सेवा करती है. स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है, और कहती है कि घर जाने पर तू अहोई माता का उद्यापन करना. सात-सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देना. उसने घर लौट कर देखा तो उसके सात बेटे और सात बहुएं बैठी हुई मिली. वह खुशी के मारे भाव-भिवोर हो गई . उसने सात अहोई बनाकर सातकड़ाही देकर उद्यापन किया. अहोई का एक अर्थ यह भी होता है ‘अनहोनी को होनी बनाना’. जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था. जिस तरह अहोई माता ने उस साहूकार की बहू की कोख को खोल दिया, उसी प्रकार इस व्रत को करने वाली सभी नारियों की अभिलाषा पूर्ण करें.