नवरात्रि में ‘ललिता पंचमी व्रत’ का महत्व जानिए, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

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    -सीमा कुमारी

    आदि शक्ति मां भवानी की पूजा का महापर्व ‘शारदीय नवरात्रि’ (Shardiya Navratri) 26 सितंबर सोमवार से शुरू हो रही है। हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती हैं। इसके अलावा, इस दिन ‘ललिता पंचमी’ ( Lalita Panchami) का पावन व्रत भी रखा जाता हैं। इसमें देवी सती के रूप मां ललिता की आराधना की जाती हैं। 

    देवी ललिता मां की दस महाविद्याओं में से एक हैं। इन्हें त्रिपुरा सुंदरी और षोडसी के नाम से भी जाना जाता हैं। यह सोलह कलाओं से युक्त मानी जाती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र के प्रयोग किया तो सारी धरा पर जल-जीवन समाप्त होने लगा। तब ऋषि-मुनियों ने मां ललिता देवी का आवाह्न किया, उनके प्रताप से ही धरती फिर से हरी-भरी हो गई। महाराष्ट्र और गुजरात में इस व्रत का विशेष महत्व हैं। आइए जानें ललिता पंचमी व्रत का मुहुर्त, पूजा विधि और महिमा…

    शुभ मुहुर्त

    पंचांग के अनुसार अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 30 सितंबर 2022 सुबह 12 बजकर 08 मिनट से उसी दिन रात में 10 बजकर 34 मिनट तक रहेगी ।

    अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 53 – दोपहर 12 बजकर 41 (30 सितंबर 2022)

    पूजन विधि

    मां ललिता देवी, आदिशक्ति मां दुर्गा की दसविद्या में से एक हैं। इसलिए शारदीय नवरात्रि में इनके पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन सबसे पहले सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पूजन करने के लिए उत्तर या उत्तर पूर्व दिशा में मां की प्रतिमा स्थापित करके, गंगा जल से आचमन करें। ललिता देवी को धूप,दीप,रोली, अक्षत अर्पित कर पूजन करना चाहिए। ललिता देवी को लाल रंग के फूल और लाल चुनरी चढ़ाएं। दिन भर फलाहार का व्रत रख कर, अगले दिन स्नान करके व्रत का पारण करें।

    महिमा

    ललिता पंचमी का व्रत करने से सारे भौतिक सुखों की प्राप्ति होती हैं। ललिता पंचमी व्रत के प्रभाव से भक्तों के समस्त कष्ट दूर होते हैं। ललिता पंचमी व्रत के दिन ललितासहस्त्रनाम या फिर ललितात्रिशती का पाठ करना उत्तम होता हैं।