Learn the glory of Mahaparva Chhath puja, laws and regulations

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-सीमा कुमारी

कार्तिक माह हिन्दुओं का एक पवित्र एवं पावन महीना हैं. सारे त्योहरों की शुरुआत इसी महीने से होती है. जैसे दिवाली, नवरात्री, भाईदूज और छठ आदि. दीवाली के छह दिन बाद से ही छठ पूजा की शुरुआत होती है. छठ पूजा को महापर्व भी कहा जाता है. यह हिन्दुओं का ख़ास त्यौहार है. इसकी धूमधाम देशभर में देखने को मिलती है. लेकिन खासकर बिहार-झारखण्ड में इस पर्व को लेकर अलग ही उत्साह देखा जाता हैं.

सूर्य देव की अराधना वाला ये पर्व एक उत्सव के तौर पर पूरे चार दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को खत्म होती है. साल में चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दो बार छठ पूजा की जाती है. इस बार कार्तिक छठ पूजा 20 नवंबर से आरंभ हो रही है. आइये जानते हैं छठ पूजा से जुड़े विधि-विधान, खरना और सुबह शाम अर्घ्य का मुहूर्त.

विधि-विधान और शुभ मुहूर्त:

18 नवंबर- छठ पूजा के पहले दिन को नहाय खाय के नाम से जाना जाता है. इसमें घर की साफ-सफाई पूरी तरह से की जाती है और अगले तीन दिनों तक मांसहारी भोजन खाना पूरी तरह से बंद  होता है. नहाय खाय के दिन अरवा चावल, लौकी की सब्जी और अन्य कई तरह के भोजन बनाए जाते हैं. इसे भोग लगाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है.

19 नवंबर- छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन शाम के वक्त खीर का प्रसाद बनता है, जिसे पूरे दिन के उपवास के बाद व्रती ग्रहण करती है और इसके बाद अगले 2 दिनों तक अन्न जल ग्रहण नहीं करती. खरना के दिन विशेषकर गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का प्रसाद होता है.

20 नवंबर- तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य दिया जाता है. यानी डूबते हुए सूर्य की अराधना की जाती है. बांस के सूप में फल-फूल व ठेकुआ का प्रसाद सजाकर सूर्य देव को जल या दूध से अर्घ्य दी जाती है. संध्या अर्घ्य के बाद सपरिवार रात्रि में छठ गीत या कथा सुनी जाती है.

21 नवंबर- चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दी जाती है इसलिए इसे उषा अर्घ्य भी कहा जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले ही नदी पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देने की प्रथा है. इसके बाद व्रती सूर्य देव से मनोकामना मांगने के बाद प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलती है.

छठ पूजा से जुड़े कुछ नियम:

  • छठ पर्व में पूरे चार दिन शुद्ध कपड़े पहने के नियम हैं और इन कपड़ो में सिलाई ना होने का पूर्ण रूप से खास ध्यान रखा जाता है. जहां महिलाएं साड़ी पहनती हैं तो वहीं, पुरुष धोती धारण करते हैं.
  • त्योहार के पूरे चार दिन व्रत करने वाले वर्तियों का जमीन पर सोना ज़रूरी होता है. कम्बल या फिर चटाई का प्रयोग करना होता है.  
  • इन खास दिन प्याज और लहसुन भी वर्जित होता है.
  • इस पावन पर्व में वर्तियों के पास बांस के सूप का होना बहुत अनिवार्य माना जाता है.
  • वहीं, पूजा के बाद अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राम्हणों को भोजन कराने का नियम है.
  • प्रसाद के तौर पर गेहूँ और गुड़ के आटों से बना ठेकुआ और फलों में केले प्रमुख होते हैं.
  • अर्घ्य देते वक्त सारी वर्तियों के पास गन्ना होना बहुत आवश्यक माना जाता है. क्योकि गन्ने से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.