‘दशावतार’ में से एक हैं भगवान जगन्‍नाथ, दर्शन मात्र से ही होता है जीवन का कल्याण

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    -सीमा कुमारी

    भारत की सर्वश्रेष्ठ एवं पवित्र धाम श्रीजगन्नाथ पुरी हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra) विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा है, जिसे ‘रथयात्रा’, ‘गुण्डीचा यात्रा’, ‘पतितपावन यात्रा’, ‘जनकपुरी यात्रा’, ‘घोषयात्रा’, ‘नवदिवसीय यात्रा’ तथा ‘दशावतार यात्रा’ आदि नाम से भी जाना जाता है।

    भगवान जगन्नाथ को समर्पित यह रथयात्रा एक सांस्कृतिक महोत्सव भी है, जिसमें  समूची देश और दुनिया के श्रद्धालु भाग लेते हैं। आध्यात्मिक और धार्मिक विद्वानों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं विश्व मानवता के केन्द्र बिंदू हैं। श्री जगन्नाथ विश्व मानवता के स्वामी हैं, जो अपने-आप में सौर (Said), वैष्णव (Vaishnava), शैव (Shiva), शाक्त (Shakta), गाणपत्य (Ganpatya), बौद्ध (Bauddha) और जैन (Jain) के जीवंत समाहार विग्रह के स्वरुप हैं।

    मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ कलियुग के एकमात्र ‘पूर्णदारुब्रह्म’ हैं। भगवान जगन्नाथ अवतार ही नहीं बल्कि अवतारी भी हैं, जो 16 कलाओं से सम्पूर्ण हैं।

    पौराणिक मान्यताएं हैं कि, भगवान जगन्नाथ अटूट आस्था एवं विश्वास के ईश्वर हैं। भगवान जगन्नाथ मंदिर के ‘सिंहद्वार’ के सामने श्रीमंदिर के दशावतार रुप के बीच में ‘अष्टलक्ष्मी देवी’  विराजती हैं। माना जाता है कि, सद्हृदय और निश्छल भाव से उनके दर्शन मात्र से ही मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के दिन ‘रथारुढ रूप’ को देखकर समूची सृष्टि को शांति, एकता तथा मैत्री का पावन संदेश मिलता है।

    श्रीजगन्नाथ पुरी में धर्मकानन है, जहां आदिशंकराचार्य, चैतन्य, रामानुजाचार्य, जयदेव, नानक, कबीर और तुलसी जैसे अनेक संत आए और भगवान की अलौकिक महिमा को स्वीकार किया उनके अनन्य भक्त बन गए।

    भगवान जगन्नाथ विष्णु के दशावतारों में से एक अवतार हैं। जिनकी रथयात्रा हर साल आषाढ महीने की शुक्ल द्वितीया को शुरू होती है। इस वर्ष की ‘रथयात्रा’ 12 जुलाई से है।  ‘पद्म पुराण’ (Padma Puran) के अनुसार,  आषाढ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि सभी प्रकार के कार्यों के लिए सिद्धिदायक होती है। इस साल ‘अक्षय तृतीया’ (Akshaya Tritiya) के दिन, यानी 15 मई से भगवान जगन्नाथ की यात्रा के लिए रथनिर्माण का कार्य शुरू किया जा चुका है। रथनिर्माण में लगभग 2 महीने का समय लगता है। ‘अक्षय तृतीया’ के दिन से भगवान जगन्नाथ की विजय प्रतिमा की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा भी पुरी के चंदन तालाब में स्थापित हुई।

    विद्वानों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, भगवान जगन्नाथ के प्रति निस्वार्थ भक्ति,  प्रेम, करुणा, श्रद्धा, विश्वास और आत्म-अहंकार के त्याग का परिचायक है। मान्यता है कि इस रथयात्रा के दर्शन मात्र से ही सद्हृदय व्यक्ति के जीवन का कल्याण हो जाता है। ‘रथयात्रा’ भारतीय आत्मचेतना का शाश्वत और सनातन प्रतीक है, जो अनादिकाल से पुरी धाम में होती आ रही है।

    इस वर्ष ‘रथयात्रा’ (Rath Yatra) के दिन, 12 जुलाई की सुबह श्रीमंदिर के रत्नवेदी से चतुर्धादेव विग्रहों को एक-एक कर संपूर्ण पारंपरिक विधि-विधान से उनके अलग-अलग रथों पर विराजमान कराया जाएगा। भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम ‘नंदिघोष रथ’ (Nandighosh Rath) है, जिस पर उनको विराजमान किया जाएगा। बलभद्रजी (Balbhadra) के रथ का नाम ‘तालध्वजरथ’ (Taldhwaja Rath) है। उस रथ पर उनको विराजमान कराया जाएगा। और, देवी सुभद्रा के रथ का नाम ‘देवदलन रथ’ (Devadalan Rath) है, जिसपर देवी माता सुभद्रा और सुदर्शन देव विराजमान होंगे।

    ‘रथयात्रा’ के दिन सबसे आगे रथयात्रा पर भगवान बलभद्र जी का ‘तालध्वज रथ’ चलेगा। उसके बाद ‘देवदलन रथ’ और क्रम में अंतिम रथ  भगवान जगन्नाथ का रथ ‘नंदिघोष रथ’ होगा।

    इस साल की दिव्य और भव्य ‘रथयात्रा’ के लिए रथनिर्माण का कार्य पुरी के गजपति महाराजा श्री श्री दिव्य सिंहदेवजी (Gajapati Maharaja Sri Divya Singhdeo) के राजमहल ‘श्रीनाहर’ के सामने रखखल्ला में चल रहा है। रथयात्रा के एक दिन पहले, आषाढ शुक्ल प्रतिपदा के दिन बलभद्र देव, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रह, यानी तीनों रथों को श्रीमंदिर के सिंहद्वार के सामने उत्तर दिशा की ओर मुख करके रखा जाता है। और, रथयात्रा के दिन तीनों रथों को इस प्रकार श्रेणीबद्ध तरीके से खड़ा किया जाता है, कि रथों के रस्सों को खींचने में बडदाण्ड यानी, श्रीमंदिर के सिंहद्वार के ठीक सामने की चौड़ी और बड़ी सड़क के बीचों-बीच ही तीनों रथ एक साथ एक गति में चल सकें। रथ संचालन के लिए झंडियां हिलाकर निर्देश दिए जाते हैं।

    ‘रथयात्रा’ (Ratha Yatra) सनातन हिंदू धर्म में सबसे बड़ी  सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महोत्सवों में से एक है, जो वैशाख महीने की ‘अक्षय तृतीया’ (Akshaya Tritiya) से आरंभ होकर आषाढ महीने की ‘त्रयोदशी’ तक चलता है।  हर साल ‘वसंत पंचमी’ (Vasant Panchami) से रथयात्रा हेतु रथों के निर्माण के लिए लकड़ी इकट्ठा करने का काम आरंभ हो जाता है। ‘रथयात्रा’ के दिन  देवविग्रहों को जिस श्रद्धा और आत्मीयता से भारी संख्या में श्रद्धालुगण कंधे एक-एक कदम आगे बढाते हुए ‘पहण्डी विजय’ कराते हैं और तीनों देवी-देवताओं को रथों पर आसीन कराते हैं, अति अलौकिक दिव्य और भव्य भावामय दृश्य होता है।