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    -सीमा कुमारी

    इस वर्ष ‘कजरी तीज’ (Kajari Teej) का पावन व्रत 14 अगस्त दिन रविवार को मनाया जा रहा है। यह व्रत हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है।

    ‘कजरी तीज'(Kajari Teej) को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे- कजरी तीज, कजली तीज, बूढ़ी तीज और सातूड़ी तीज आदि।

    यह व्रत सुहागिन महिलाओं का एक प्रमुख त्योहार होता है। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और उनके सुखमय वैवाहिक जीवन की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखती है।

    इसके साथ ही कजरी तीज का व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए काफी शुभ माना जाता है। मान्यता है कि जो कुंवारी कन्या मन और श्रद्धा के साथ इस व्रत को रखती हैं उन्हें सौभाग्यवती का वरदान मिलता है। आइए जानें कजरी तीज का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।

    शुभ मुहूर्त  

    कजरी तीज की तिथि- 14 अगस्त 2022

    भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि प्रारंभ- 13 अगस्त की रात 12 बजकर 53 मिनट से शुरू

    भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि समाप्त- 14 अगस्त की रात 10 बजकर 35 मिनट तक

    पूजा-विधि

    • कजरी तीज के दिन माता पार्वती के रूप में नीमड़ी माता की पूजा की जाती है।
    • कजरी तीज के दिन महिलाएं स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर मां का स्मरण करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लें।
    • घर में सही दिशा का चुनाव करके मिट्टी या गोबर से एक तालाब जैसा छोटा घेरा बना लें।
    • गोबर या मिट्टी से बने उस घेरे में कच्चा दूध या जल भर लें और उसके एक किनारे पर दीपक जला लें।
    • इसके बाद एक थाल में ऊपर बताई गई पूजन सामग्री केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि समान रखें।
    • बनाए हुए घेरे के एक किनारे पर नीम की एक डाल तोड़कर लगाएं और नीम की टहनी पर चुन्नी ओढ़ाएं।
    • इसके बाद नीमड़ी माता की पूजा करें।  

    करवा चौथ के व्रत की तरह रात में चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें।

    माता नीमड़ी को भोग लगाकर अपने व्रत का पारण करें।

    धार्मिक महत्व

    मान्यताओं के अनुसार, कजरी तीज व्रत में सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत कन्याओं के लिए भी विशेष फलदायी माना गया है। मान्यता है कि जो सुहागिन महिला और कुंवारी कन्या नियमपूर्वक व्रत रखकर विधि-विधान से माता शिव और पार्वती का पूजन करती है उन्हें अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत का पारण चंद्रदेव के दर्शन और अर्घ्य देने के बाद ही किया जाता है।