काल भैरव जयंती
काल भैरव जयंती

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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली: हर महीने के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत (Kalashtami vrat) मनाया जाता है। इस साल मार्गशीर्ष महीने में कृष्ण पक्ष की ‘कालाष्टमी’ का पावन व्रत 27 नवंबर दिन शनिवार को है। ऐसी मान्यता है कि, इस दिन भगवान शिव जी के क्रुद्ध स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई है। अतः कालाष्टमी के दिन भगवान शिवजी के काल भैरव स्वरूप की पूजा – अर्चना की जाती है।

    मान्यता अनुसार, जो भी श्रद्धालु ‘कालभैरव’ देव की पूजा-उपासना करते हैं। उनके जीवन से समस्त प्रकार के दुःख और क्लेश दूर हो जाते हैं। साथ ही जीवन में यश और कीर्ति का आगमन होता है। आइए जानते हैं कालभैरव जयंती के महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में –

    शुभ मुहूर्त

     मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 27 नवंबर 2021 को है. शनिवार को सुबह 05 बजकर 43 मिनट से लेकर मार्गशीर्ष मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समापन- 28 नवंबर 2021 को  रविवार को प्रातः 06:00 बजे तक रहेगा |

    पूजा विधि

    इस दिन सुबह उठ जाएं। इसके बाद सभी नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि कर लें।

    स्नानादि के बाद स्वच्छ वस्त्र पहन लें।

    इसके बाद घर के मंदिर में या किसी शुभ स्थान पर कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

    इसके चारों तरफ गंगाजल छिड़क लें। फिर उन्हें फूल अर्पित करें।

    फिर नारियल, इमरती, पान, मदिरा, गेरुआ आदि चीजें अर्पित करें।

    फिर कालभैरव के समक्ष चौमुखी दीपक जलाएं और धूप-दीप करें।

    फिर ‘भैरव चालीसा’ (Bhairav Chalisa) का पाठ करें। फिर भैरव मंत्रों का 108 बार जाप करें।

    इसके बाद आरती करें और पूजा संपन्न करें।

    ‘कालभैरव जयंती’ का महत्व

    ‘कालभैरव जयंती’ के मौके पर पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को डर से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि कालभैरव की पूजा करने से ग्रह बाधा और शत्रु वगैरह दोनों से ही मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के मुताबिक, अच्छे कार्य करने वाले लोगों के लिए कालभैरव भगवान का स्वरूप हमेशा ही कल्याणकारी रहता है। वहीं, अनैतिक कार्य करने वालों के लिए वे हमेशा दंडनायक रहे हैं। इतना ही नहीं, ये भी कहा जाता है कि जो भी भगवान भैरव के भक्तों के साथ अहित करता है, उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण नहीं मिलती है।