वैकुण्ठ चतुर्दशी को करें भगवान विष्णु और शिव की पूजा

भगवान विष्णु और शिव शंकर की पूजा को समर्पित वैकुण्ठ चतुर्दशी आज है। यह हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है।

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भगवान विष्णु और शिव शंकर की पूजा को समर्पित वैकुण्ठ चतुर्दशी आज है। यह हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ती है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहा जाता है। नरक चतुर्दशी को मृत्यु के देवता यमराज और वैकुण्ठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु की पूजा विधि विधान से की जाती है। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव शंकर की भी पूजा करने का विधान है। ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। वैकुण्ठ चतुर्दशी का यह पावन व्रत शैवों एवं वैष्णवों की पारस्परिक एकता और भगवान विष्णु तथा शिव के ऐक्य का प्रतीक है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी मुहूर्त: चतुर्दशी तिथि का प्रारंभ 10 नवंबर को शाम 04 बजकर 33 मिनट पर हो रहा है, जो 11 नवंबर को शाम 06 बजकर 02 मिनट तक रहेगा। अर्थात् इसका समापन 11 नवम्बर की शाम 06:02 बजे हो रहा है।

10 तारीख को शाम के समय तक त्रयोदशी तिथि है, 04 बजे के बाद से चतुर्दशी का प्रारंभ हो रहा है। चतुर्दशी में सूर्योदय का महत्व होता है। ऐसे में वैकुण्ठ चतुर्दशी 11 को होगी।

व्रत एवं पूजा: वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात दिनभर व्रत करें। रात्रि के समय भगवान विष्णु को कमल पुष्प अर्पित करें और विधिपूर्वक पूजा करें। इसके बाद देवों के देव महादेव भगवान शिव की विधि विधान से पूजा करें. अगले दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान शिव की दोबारा पूजा करें। इसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं, फिर आप पारण करें।

वैकुण्ठ चतुर्दशी कथा: एक बार भगवान् विष्णु देवों के देव महादेव का पूजन करने के लिए काशी पधारे। काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने 1000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान् विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया।

अभिषेक के बाद जब वे पूजन करने लगे तो शिव जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा के उद्देश्य से एक कमल पुष्प कम कर दिया। भगवान् श्रीहरि को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प चढ़ाने थे।

एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा कि उनकी आंखें कमल के ही समान हैं, इसलिए उनको ‘कमलनयन’ और ‘पुण्डरीकाक्ष’ कहा जाता है। एक कमल के स्थान पर वह अपनी आँख ही चढ़ा देते हैं। यह सोचकर वे अपनी आंखें चढ़ाने को आगे बढ़े।

भगवान श्रीहरि विष्णु की इस भक्ति से प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव प्रकट हुए और बोले -हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है, आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब वैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रतपूर्वक पहले आपका पूजन कर जो मेरा पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी। भगवान शिव ने विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान करते हुए कहा कि यह राक्षसों का अंत करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसके समान कोई अस्त्र नहीं होगा।