
सीमा कुमारी
नवभारत डिजिटल टीम: दिवाली के ठीक 6 दिन बाद नहाय-खाय के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ (Chhath Parva) की शुरुआत हो गई है। इस बार आस्था का महापर्व छठ 17 नवंबर से 20 नवंबर तक चलेगा। हिंदू पंचागों की मानें तो, छठ पूजा हर साल कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन सूर्य देव और मां छठी की पूजा (Chhath Puja 2023) विधि-विधान के साथ की जाती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से संतान की आयु लंबी होती है।
कार्तिक माह के चतुर्थी तिथि यानी पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती है। छठ पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री पर ध्यान दिया जाए तो गन्ने का अपना एक विशेष महत्व है। इसका अपना एक धार्मिक महत्व भी है। आइए जानें छठ पूजा में गन्ने का धार्मिक महत्व के बारे में-
ज्योतिषाचार्य मनोज तिवारी के अनुसार, छठ पूजा में कई तरह के फल इस्तेमाल किए जाते हैं। फलों का इस पूजा में खास महत्व होता है। गन्ना इनमें सबसे खास है। नारियल, केला, नींबू, सिंघाड़ा, सुपारी के अलावा इस पूजा का सबसे अहम फल गन्ना होता है। छठ पूजा की शाम को व्रती आंगन या घर में कई सारे गन्ने रखती है।
इन्हीं गन्नों से छठी मईया की पूजा की जाती है। इन गन्नों को घर की आकृति में सजाया जाता है। छठी मैया की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि छठी मैया का प्रिय फल गन्ना है। यही वजह है कि गन्ने से बने गुड़ या रस से खरना के दिन व्रती प्रसाद बनाती है। मान्यता यह भी है कि गन्ना चढ़ाने से छठी मैया आनंद और समृद्धि प्रदान करती है। गन्ने को भी कोई जीव जूठा नहीं कर सकता है।
कहते हैं, गन्ने को पूजा में रखने से छठी मैया प्रसन्न होती है। इसलिए इसे चढ़ाए बिना छठ की पूजा पूरी नहीं होती है। वहीं, दूसरी मान्यता यह भी है कि छठ पूजा में सबसे पहले नई फसल का प्रसाद चढ़ाया जाता है, इसलिए प्रसाद के रूप में गन्ना जरूर चढ़ाना होता है। गन्ने को पूजा में उपयोग करना इसलिए भी सबसे अच्छा बताया गया है क्योंकि इसे कोई पशु या पक्षी जूठा नहीं करता है और यह सबसे शुद्ध होता है।