Amla Navami
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    -सीमा कुमारी

    सनातन हिन्दू धर्म में ‘आंवला नवमी’ (Amla Navami) का बड़ा महत्व है। इस साल ‘आंवला नवमी 12 नवंबर,शुक्रवार के दिन है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी अक्षय या आंवला नवमी के नाम से मनाई जाती है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। और आंवले के पेड़ की पूजा भी की जाती है। इस दिन स्नान, दान, व्रत-पूजा का विधान रहता है। यह संतान प्रदान करने वाली और सुख समृद्धि को बढ़ाने वाली नवमी मानी जाती है।

    सनातन धर्म में पुत्र की प्राप्ति के लिए महिलाएं आंवला नवमी की पूजा करती है। कहा जाता है कि, यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आंवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। आइए जानें आंवला नवमी’ का शुभ मुहर्त और पूजा विधि –

    शुभ मुहूर्त

    12 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त है।

    नवमी तिथि प्रारंभ

    12 नवंबर 2021, दिन शुक्रवार को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 13 नवंबर, शनिवार को सुबह 05 बजकर 30 मिनट तक रहेगी।

    पूजा विधि

    महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं। उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें। फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें। पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें। कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है। इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है।

    महत्व

    अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाकर खाने का भी विशेष महत्व है। अगर आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाने में असुविधा हो तो घर में खाना बनाकर आंवले के पेड़ के नीचे जाकर पूजा करने के बाद भोजन करना चाहिए। खाने में खीर, पूड़ी और मिठाई हो सकती है। दरअसल, इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही यह त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

    इसके बाद पेड़ की जड़ों को दूध से सींचकर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटना चाहिए। और फिर, रोली, चावल, धूप दीप से पेड़ की पूजा करें। आंवले के पेड़ की 108 परिक्रमा करने के बाद कपूर या घी के दीपक से आंवले के पेड़ की आरती करें। इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए और आखिर में खुद भी आंवले के पेड़ के पास बैठकर खाना खाएं. यह अक्षय नवमी धात्रीनवमी और कूष्माण्ड नवमी भी कहलाती है। घर में आंवले का पेड़ न हो तो किसी बगीचे में आंवले के पेड़ के पास जाकर पूजा दान आदि करने की परंपरा है। या फिर गमले में आंवले का पौधा लगाकर घर मे यह काम पूरा कर लेना चाहिए।