File Photo
File Photo

    Loading

    -सीमा कुमारी

    हर साल सावन महीने की पूर्णिमा को भाई-बहन के प्रेम का पर्व भारत और विदेशों में रहने वाले भारतवंशियों द्वारा ‘रक्षाबंधन’ मनाया जाता है। ‘रक्षाबंधन’ (RakshaBandhan) का पर्व इस साल 22 अगस्त, रविवार को मनाया जाएगा।

    मान्यताओं के अनुसार, इस दिन बहनें अपने भाईयों की लंबी आयु और अच्छे जीवन की कामना करते हुए उनकी कलाई में राखी (रक्षा धागा) बांधती हैं। भाई भी जीवन भर बहन के सुख-दुख में साथ निभाने का वादा करता है और स्नेह स्वरूप बहन को उपहार भी देता है। इस त्योहार को प्राचीन काल से मनाने की परंपरा चली आ रही है। ऐसे में कई लोगों के मन में सावल उठता है कि, आखिर ‘रक्षाबंधन’ पर्व मनाने के पीछे की वास्तविक कहानी क्या है? आइए जानें इस बारे में…

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, सदियों से राखी बांधने की पवित्र परंपरा चली आ रही है। प्रचलन सबसे पहली राखी  (रक्षा-सूत्र) राजा बलि को बांधा गया था। उन्हें धन की देवी माता लक्ष्मी ने रक्षा-सूत्र बांधकर अपना भाई बनाया था।

    राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा में तीन पग (डग) भूमि मांगी। भगवान ने दो पग में ही पूरी धरती नाप डाली और फिर तीसरा पग देने के लिए तब राजा बलि से कहा। इस पर राजा बलि समझ गए कि वामन रूप में दिख रहा यह भिक्षुक कोई साधारण भिक्षुक नहीं है।

    तीसरे पग के रूप में राजा बलि ने अपना सिर भगवान विष्णु के आगे झुका दिया। इससे भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने को कहा। राजा बलि ने मांगा कि भगवान स्वयं उसके दरवाजे पर रात दिन खड़े रहें। ऐसे होने के बाद भगवान विष्णु राजा बलि के पहरेदार बन गए।

    कहा जाता है कि काफी दिन तक भगवान स्वर्गलोक वापस नहीं पहुंचे, तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षा-सूत्र बांधा और अपना भाई बनाया। मां लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तब से अभी तक तक बहनें अपने भाई राखी बांधती हैं और इसके बदले भाई से रक्षा का बचन लेती हैं।

    इसी कहानी के अलावा  कुछ और भी कहानियां हैं, जिनमें राखी बांधने की परंपरा का उल्लेख है।