इस दिन है ‘हनुमान जयंती’, जानिए सही तिथि और पूजा का मुहूर्त और श्री हनुमान जी की जन्म-कथा

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    -सीमा कुमारी

    हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को संकटमोचन राम भक्त हनुमान जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल ‘हनुमान जयंती’ 16 अप्रैल को है। हिन्दू श्रद्धालुओं  को हनुमान जयंती का बेसब्री से इंतजार रहता है। हनुमान जी के भक्तों में ‘हनुमान जयंती’ के मौके पर खासा उत्साह देखने को मिलता है, और देशभर में इस दिन को बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

    ऐसा माना जाता है कि, भगवान विष्णु को राम अवतार के वक्त सहयोग करने के लिए रुद्रावतार हनुमान जी का जन्म हुआ था। रावण का वध, सीता की खोज और लंका पर विजय पाने में हनुमान जी ने प्रभु श्रीराम की पूरी मदद की थी। हनुमान जी के जन्म का उद्देश्य ही राम भक्ति था। तो आइए जानें हनुमान जयंती कब है, पूजा का मुहूर्त एवं हनुमान जी की जन्म कथा क्या है।

    तिथि एवं मुहूर्त

    पंचांग के अनुसार, इस साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल दिन शनिवार को तड़के 02 अजकर 25 मिनट पर शुरु हो रही है। पूर्णिमा तिथि का समापन उसी दिन देर रात 12 बजकर 24 मिनट पर हो रहा है। सूर्योदय के समय पूर्णिमा तिथि 16 अप्रैल को प्राप्त हो रहा है, ऐसे में हनुमान जयंती 16 अप्रैल को मनाई जाएगी। इस दिन ही व्रत रखा जाएगा और हनुमान जी का जन्म उत्सव मनाया जाएगा।

    इस बार की ‘हनुमान जयंती’ रवि योग, हस्त एवं चित्रा नक्षत्र में है। 16 अप्रैल को हस्त नक्षत्र सुबह 08:40 बजे तक है, उसके बाद से चित्रा नक्षत्र शुरु होगा। इस दिन रवि योग प्रात: 05:55 बजे से शुरु हो रहा है और इसका समापन 08:40 बजे हो रहा है।

    कथा

    पौराणिक कथाओं के मुताबिक, अयोध्या नरेश राजा दशरथ ने जब पुत्रेष्टि हवन कराया था तब उन्होंने अपनी तीनों रानियों को प्रसाद स्वरूप खीर खिलाई थी। इसी दौरान खीर का थोड़ा सा अंश एक कौआ लेकर उड़ गया और वो कौआ वहां जा पहुंचा जहां माता अंजना शिव तपस्या में लीन थीं। तपस्या में लीन मां अंजना ने उस खीर को शिव जी के प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लिया। इस खीर के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद हनुमान जी का जन्म हुआ।

    आपको बता दें कि, हनुमान जी भगवान शिव (Lord Shiva) के 11वें रुद्रावतार माने जाते है। वैसे तो हनुमान जी के कई सारे नाम हैं लेकिन मां अंजना के कारण हनुमान जी को आंजनेय के नाम से भी बुलाया जाता है।  इसके अलावा, पिता वानर राज केसरी के कारण केसरीनंदन और पवन देव के सहयोग की वजह से पवन पुत्र (Pawan Putra) आदि नामों से भी जाना जाता है।