Gujarat court refuses to change order prohibiting Rath Yatra in Ahmedabad
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    -सीमा कुमारी

    जगन्नाथ रथ यात्रा क्यों निकलती है इसके पीछे पौराणिक कथा के साथ-साथ कुछ और कथाएं हैं। एक कथा ये भी है कि राजा रामचन्द्रदेव ने एक यवन महिला से विवाह कर जब इस्लाम धर्म अपना लिया तो उनका मंदिर में प्रवेश निषेध हो गया था। उसके बाद यात्रा निकाली जाने लगी, क्योंकि वे भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त थे।

    पौराणिक कथा ये भी है कि ‘स्नान पूर्णिमा’, यानी ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। इस दिन प्रभु जगन्नाथ को बड़े भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा के साथ रत्नसिंहासन से उतार कर मंदिर के पास बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।

    इस दिन भगवान जगन्नाथ को 108 कलशों से स्नान कराते हैं। मान्यता है कि इस इस स्नान से प्रभु बीमार हो जाते हैं उन्हें ज्वर आ जाता है। जिसके बाद 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है, इस कक्ष को ‘ओसर घर’ कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

    15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं, जिसे ‘नव यौवन नैत्र उत्सव’ भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।