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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म में ‘भड़ली नवमी’ का विशेष महत्व है। देश के कई भागों में इसे ‘भड़रिया नवमी’ या ‘भड़ल्या नवमी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को होती है। यह विवाह के लिए यह एक शुभ मुहूर्त होता है।

    विशेष बात ये है कि इस नवमी के दिन विवाह करने के लिए किसी प्रकार के पंचांग या शुभ मुहूर्त की जरूरत नहीं हैं, क्योंकि यह एक अबूझ साया होता है। इस दिन बिना मुहूर्त के विवाह कर सकते हैं। आइए जानें ‘भड़ली नवमी’ की तिथि और महत्व –

    ‘भड़ली नवमी’

    पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 07 जुलाई, गुरुवार को शाम 07:28 बजे शुरू होगी, जो कि अगले दिन 08 जुलाई, शुक्रवार को शाम 06:25 पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार ‘भड़ली नवमी’ 08 जुलाई को मनाई जाएगी।

    ‘भड़ली नवमी’ पर होंगे 3 शुभ योग

    इस साल भड़ली नवमी पर 3 शुभ योग बन रहे हैं , जो कि इस दिन के महत्व को और भी बढ़ा देते हैं। इसमें शिव योग, सिद्ध योग और रवि योग शामिल हैं।

    शिव योग: सुबह 09:01 बजे तक रहेगा।

    सिद्ध योग: सुबह 09: 01 बजे शुरू होगा और पूरे दिन रहेगा।

    रवि योग: 8 जुलाई को दोपहर 12:14 पर शुरू होगा और 9 जुलाई को शाम 05:30 बजे तक रहेगा।

    ‘भड़ली नवमी’ का महत्व

    सनातन धर्म में ‘भड़ली नवमी’ को ‘अबूझ मुहूर्त’ और ‘अबूझ साया’ भी कहा जाता है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य करने के लिए पंचांग देखने की जरूरत नहीं होती। यदि आप कोई मांगलिक कार्य करना चाहते हैं, इस दिन कर सकते हैं। कई बार शादी के लिए शुभ मुहूर्त नहीं मिलता, और यदि मिलता है, तो उसके लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में ‘अबूझ मुहूर्त’ में विवाह किया जा सकता है। ध्यान दिला दें कि, ‘भड़ली नवमी’ के बाद 10 जुलाई से ‘चातुर्मास’ शुरू हो रहा है। जिसके बाद अगले चार महीने तक कोई भी शुभ कार्य, जैसे- विवाह, सगाई, मुंडन या गृह प्रवेश नहीं किया जाता।