आज है ‘महालक्ष्मी व्रत’, जानें शुभ मुहूर्त और इसकी महिमा

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    -सीमा कुमारी

    हिन्दू धर्म में ‘महालक्ष्मी व्रत’ का बहुत अधिक महत्व है। यह व्रत भादो महीने की ‘शुक्ल अष्टमी’ के दिन से शुरू होता है।और सोलह दिनों तक चलता है। इस साल यह व्रत 13 सितंबर, यानि सोमवार से शुरू हो रहा है।

    16 दिनों तक चलने वाला यह महापर्व भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी को प्रारम्भ होता है और आश्विन मास कृष्णपक्ष की अष्टमी की तिथि तक चलता है।

    शास्त्रों के मुताबिक, ‘महालक्ष्मी व्रत’ (Mahalakshmi Vrat) का विशेष महत्व है। माता लक्ष्मी को धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माना जाता है। मान्यता है कि यदि माता ‘वरलक्ष्मी’ की पूर्ण श्रद्धा भक्ति से आराधना की जाए तो मां अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं और भक्तों के सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

    शुभ मुहूर्त-

    ‘महालक्ष्मी व्रत’ सोमवार, सितम्बर 13, 2021 को

    ‘महालक्ष्मी व्रत’ प्रारम्भ-

    सोमवार, सितम्बर 13, 2021 को

    महालक्ष्मी व्रत पूर्ण-

    मंगलवार, सितम्बर 28, 2021 को

    अष्टमी तिथि प्रारम्भ –

    सितम्बर 13, 2021 को 03:10 पी एम बजे

    अष्टमी तिथि समाप्त –

    सितम्बर 14, 2021 को 01:09 पी एम बजे

    पूजा-विधि

    मान्यताओं के अनुसार, इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर माता लक्ष्मी की मिट्टी की मूर्ति या फोटो पूजा स्थान पर स्थापित करें। मां लक्ष्मी को लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्र पहनाएं। फिर उनको चन्दन, लाल सूत, सुपारी, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, नारियल, फल मिठाई आदि अर्पित करें। पूजा में महालक्ष्मी को सफेद कमल या कोई भी कमल का पुष्प, दूर्वा और कमलगट्टा भी चढ़ाएं। इसके बाद माता लक्ष्मी को किशमिश या सफेद बर्फी का भोग लगाएं। इसके बाद माता महालक्ष्मी की आरती करें। पूजा के दौरान आपको ‘महालक्ष्मी मंत्र’ या ‘बीज मंत्र’ का उच्चारण करना चाहिए।

    महालक्ष्मी व्रत उद्यापन

    ‘महालक्ष्मी व्रत’ का प्रारंभ करते समय अपने हाथ में हल्‍दी से रंगे 16 गांठ का रक्षा-सूत्र बांधते हैं। आख‍िरी द‍िन यानी 16वें दिन की पूजा के बाद इसे व‍िसर्जित कर दें। 16वें दिन महालक्ष्मी व्रत का उद्यापन होता है। उस दिन पूजा में माता लक्ष्मी की प्रिय वस्तुएं रखी जाती हैं। उद्यापन के समय 16 वस्तुओं का दान शुभ होता है। हर वस्तु की संख्या 16 रखी जाती है। जिसमें चुनरी, बिंदी, शीशा, सिंदूर, कंघा, रिबन, नथ, रंग, फल, बिछिया, मिठाई, रुमाल, मेवा, लौंग, इलायची और पुए होते हैं। पूजा के बाद माता महालक्ष्मी की आरती की जाती है।

    महालक्ष्मी व्रत कथा

    किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह हर दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा -अर्चना करता था। एक दिन उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और ब्राह्मण से एक वरदान मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने उसके घर मां लक्ष्मी का निवास होने की इच्छा जाहिर की। तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण को लक्ष्मी प्राप्ति का मार्ग बताया। भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है और वह यहां आकर उपले थापती है। तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना वह मां लक्ष्मी हैं।

    भगवान विष्णु ने ब्राह्मण से कहा, जब मां लक्ष्मी स्वयं तुम्हारे घर पधारेंगी तो घर धन-धान्य से भर जाएगा। यह कहकर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए। अगले दिन ब्राह्मण सुबह-सुबह ही मंदिर के पास बैठ गया। लक्ष्मी मां उपले थापने के लिए आईं, तो ब्राह्मण ने उनसे घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण  की बात सुनकर माता लक्ष्मी समझ गईं कि यह विष्णुजी के कहने पर ही हुआ है।

    लक्ष्मीजी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं तुम्हारे साथ चलूंगी, लेकिन तुम्हें पहले ‘महालक्ष्मी व्रत’ करना होगा। 16 दिन तक व्रत करने और 16 वें दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी।

    ब्राह्मण ने मां लक्ष्मी के कहे अनुसार व्रथ किया और मां लक्ष्मी को उत्तर दिशा की ओर मुख करके पुकारा। इसके बाद मां लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। माना जाता है कि तभी से महालक्ष्मी व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।