सुहाग और संतान की मंगलकामना के लिए आज है छठ पूजा का सबसे खास दिन

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    -सीमा कुमारी

    लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ की पूजा ‘नहाय खाय’ (Nahay Khay) से शुरू हुआ। आज छठ पूजा के तीसरे दिन सभी व्रतधारी डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। ‘खरना’ (Kharna) संपन्न होने के बाद आज प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य के लिए पहला अर्घ्य दिया जाएगा। कल सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाएगा।

    मान्यताओं के मुताबिक, शाम के समय भगवान सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। ऐसे में महिलाएं अपने सुहाग और संतान की मंगलकामना लिए सायंकाल सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं।

    भगवान सूर्य की कठिन साधना एवं तपस्या से जुड़ा व्रत ‘छठ’ सबसे कठिन व्रतों में से एक है। जिसमें व्रती अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत रखती हैं और सर्दी के समय ठंडे पानी में खड़े होकर विधि-विधान से प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा पूरे श्रद्धा एवं भाव  के साथ करती हैं।

    शास्त्रों के अनुसार, भगवान सूर्य के साथ पूजी जाने वाली छठी मैया का संबंध भाई-बहन का है। प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा, जिन्हें देवताओं की देवसेना भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय की पत्नी षष्‍ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है। मान्यता है कि, छठी मैया पूजा से प्रसन्न होकर नि:संतानों को संतान प्रदान करते हुए लंबी आयु का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

    डूबते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने से पहले पूजा के लिए बांस की टोकरी को फल-फूल, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा से जुड़े अन्य सामान को रखकर सजाया जाता है।

    सूर्यास्त के समय सूर्यदेव को दिये जाने वाले अर्घ्य को संध्या अर्घ्य भी कहते हैं, जिसे देने से व्रतधारी छठी मइया की पूजा करते हैं. शाम के समय भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रतधारी पांच बार परिक्रमा भी करते हैं।

    कार्तिक शुक्ल चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से शुरू हुआ छठ महापर्व की षष्ठी तिथि पर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद कल गुरुवार को चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी तिथि पर उदयगामी सूर्य को उनकी प्रथम किरण ऊषा को अर्घ्य देते हुए इस पावन व्रत का पारण किया जाएगा।

    संध्या अर्घ्य का शुभ-मुहर्त

    आज शाम डूबते हुए सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। संध्या अर्घ्य का शुभ मुहूर्त शाम 5 बजकर 25 मिनट पर है। सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले बांस की टोकरी को फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा के सामान से सजाया जाता है। सूर्यास्त के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पांच बार परिक्रमा की जाती है।

    जानें क्‍यों दिया जाता है डूबते सूर्य को अर्घ्‍य?

    पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। कहा जाता है कि, इससे व्रत रखने वाली महिलाओं को दोहरा लाभ मिलता है, जो लोग डूबते सूर्य की उपासना करते हैं। उन्हें उगते सूर्य की भी उपासना जरूर करनी चाहिए।

    ज्योतिषियों का मानना है कि, ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है। इसके अलावा, इससे सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मानें, ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। साथ ही साथ महिलाएं अपने सुहाग और संतान की मंगलकामना लिए सायंकाल सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर सुख-समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद भी मांगती हैं।