-सीमा कुमारी
इस साल सावन महीने का दूसरा ‘प्रदोष व्रत’ 9 अगस्त, मंगलवार को है। इस दिन मंगलवार होने के कारण यह ‘भौम प्रदोष’ (Bhaum Pradosh) व्रत कहलाएगा। ‘शिव पुराण’ के अनुसार, भोलेशंकर की आराधना के लिए प्रदोष का व्रत बहुत पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है, ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलती है। तो आइए जानें भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त पूजा विधि और महत्व के बारे में-
शुभ मुहूर्त
पंचाग के मुताबिक, सावन मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 9 अगस्त, मंगलवार को शाम 5:45 बजे से होगा। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 10 अगस्त, बुधवार को दोपहर 2:15 बजे होगा।
प्रदोष काल मुहूर्त
भगवान भोलेनाथ की पूजा के लिए प्रदोष काल मुहूर्त 9 अगस्त 2022 को शाम 7:06 बजे से रात्रि 9:14 बजे तक रहेगा।
पूजा विधि
व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद घर की मंदिर की सफाई करके भगवान के सामने दीपक जलाएं। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। शाम के समय प्रदोष काल मुहूर्त में शिवजी का गंगाजल से अभिषेक करें। ओम नमः शिवाय मंत्र का उच्चारण करते हुए चंदन, धूप, दीप, फल, पुष्प आदि सभी चीजें अर्पित करें।
प्रदोष व्रत में भोलेनाथ के साथ माता पार्वती और भगवान गणेश के पूजन का भी विधान है। वहीं भौम प्रदोष व्रत में हनुमान जी की भी पूजा-पाठ करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। पूजन के बाद भगवान भोलेनाथ को सात्विक चीजों का भोग लगाएं।
महिमा
हिंदू धर्म में ‘प्रदोष व्रत’ का विशेष महत्व हैं। भगवान शिव को समर्पित ‘प्रदोष व्रत’हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता हैं। मंगलवार के दिन प्रदोष होने से इसे ‘भौम प्रदोष'(Bhaum Pradosh) कहा जाता हैं। इस दिन भगवान शिव के साथ हनुमान जी की पूजा भी करनी चाहिए, क्योंकि बजरंगबली भोलेशंकर के ही रुद्रावतार हैं।
शाम के समय शिव पूजा के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करने से हर कार्य में सिद्धी प्राप्त होती हैं।
भौम प्रदोष पर महादेव की आराधना करने से मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव में कमी आती हैं। साथ ही व्रतधारी के तमाम दुखों का अंत होता है।
भौम प्रदोष व्रत के प्रभाव से जातक को शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिलती हैं। इसके अलावा, भगवान शिव शंकर की कृपा से परिवार को आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है।
मान्यता है इस दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से संतान सुख भी मिलता है और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस व्रत के प्रभाव से संतान पक्ष को भी लाभ होता है।