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    -सीमा कुमारी

    इस वर्ष ‘शारदीय नवरात्रि’ (Shardiya Navratri) का सातवां दिन 2 अक्टूबर, रविवार को है। इस दिन मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप ‘मां कालरात्रि’ की पूजा-अर्चना की जाती है। ‘मां कालरात्रि’ अपने नाम के स्वरूप रात्रि के समान काली हैं। उनके बाल बिखरे हुए हैं और गधे को अपनी सवारी बनाती हैं।

    उनके एक हाथ में खड़ग, एक हाथ में शूल है और दाहिने हाथ अभय और वर मुद्रा में हैं। मां का ये विकराल रूप काल को भी परास्त कर देता है, इसलिए ही मां को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि के पूजन से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और भूत-प्रेत बाधा, शत्रु और रोग-दोष का नाश होता है। आइए जानें इस साल मां कालरात्रि की पूजा की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि-

    शुभ मुहूर्त  

    शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन महा सप्तमी मनाई जाती है। इस दिन माता के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस बार आश्विन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 2 अक्टूबर को पड़ रही है। ऐसे में महा सप्तमी 2 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। इस दिन शाम 6 बजकर 28 मिनट तक सप्तमी तिथि है। उसके बाद अष्टमी तिथि शुरू हो जाएगी। उदया तिथि की मान्यता के अनुसार महा सप्तमी का व्रत 2 अक्टूबर को ही रखा जाएगा।

    पूजन विधि

    ‘मां कालरात्रि’ का पूजन नवरात्रि की सप्तमी तिथि को करने का विधान है। इस साल सप्तमी की तिथि 12 अक्टूबर, दिन मंगलवार को पड़ रही है। मां कालरात्रि के पूजन के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद मां को रोली,अक्षत,दीप,धूप अर्पित करें। हो सके तो मां को रातरानी का फूल और गुड़ अर्पित करें। ये दोनों ही मां कालरात्रि को प्रिय हैं। इसक बाद दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें तथा मां के मंत्रों का जाप करें। मां कालरात्रि के पूजन का अंत उनकी आरती करके करना चाहिए।

    इस मंत्र का करें पाठ  

    एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता

    लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी

     

    वामपादोल्लसल्लोहलताकंन्टकभूषणा

    वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी

     

    या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

    सप्तमी की आरती

    कालरात्रि जय-जय-महाकाली।

    काल के मुह से बचाने वाली॥

    दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।

    महाचंडी तेरा अवतार॥

    पृथ्वी और आकाश पे सारा।

    महाकाली है तेरा पसारा॥

    खडग खप्पर रखने वाली।

    दुष्टों का लहू चखने वाली॥

    कलकत्ता स्थान तुम्हारा।

    सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

    सभी देवता सब नर-नारी।

    गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

    रक्तदंता और अन्नपूर्णा।

    कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

    ना कोई चिंता रहे बीमारी।

    ना कोई गम ना संकट भारी॥

    उस पर कभी कष्ट ना आवें।

    महाकाली माँ जिसे बचाबे॥

    तू भी भक्त प्रेम से कह।

    कालरात्रि माँ तेरी जय॥