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    -सीमा कुमारी

    ‘मकर संक्रांति’ (Makar Sankranti) के एक दिन पहले हर साल 13 जनवरी को ‘लोहड़ी’ का पावन पर्व मनाया जाता है। इस त्योहार को पंजाब और हरियाणा में बहुत ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा के अलावा, अब देश के कई हिस्सों में लोहड़ी (Lohri) का पर्व मनाया जाने लगा है। 

    लोहड़ी का त्यौहार खुशियों का त्यौहार है, उल्लास का त्यौहार है। इस दिन जमकर भांगड़ा और गिद्दा डांस होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि, ‘लोहड़ी’ का त्यौहार दुल्ला भट्टी (Dulla Bhatti) की कहानी सुनाए बिना अधूरा ही माना जाता है। अगर आपको इस बारे में जानकारी नहीं है तो आइए जानिए ‘दुल्ला भट्टी की कहानी।’

    ‘लोहड़ी’ के दिन ‘दुल्ला भट्टी की कहानी’ खासतौर पर सुनाई जाती है। पंजाब में दुल्ला भट्टी से जुड़ी एक काफी प्रचलित लोककथा है। कहते हैं कि, मुगल शासन के दौरान जब बादशाह अकबर का राज था, उस वक्त पंजाब में दुल्ला भट्टी नाम का एक युवक रहा करता था। एक बार दुल्ला भट्टी ने देखा की कुछ अमीर व्यापारी सामान के बदले में इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे। 

    इस पर दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर न सिर्फ लड़कियों को उन अमीर व्यापारियों के चंगुल से आजाद कराया था बल्कि बाद में मुक्त कराई गईं सभी लड़कियों की उन्होंने शादी भी करवाई थी। इस घटना के बाद से दुल्ला को भट्टी के नायक की उपाधि से नवाजा गया था। इन्हीं दुल्ला भट्टी की याद में लोहड़ी के दिन कहानी सुनाने की परंपरा चली आ रही है।

    ‘लोहड़ी’ का पर्व वैसे तो सभी के लिए खुशियां लेकर आता है, लेकिन नववधू के लिए पहली ‘लोहड़ी’ कुछ ज्यादा ही खास होती है। इस दिन विशेष रूप से नई बहू को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इसके बाद वह पूरे परिवार के साथ लोहड़ी के जश्न में शामिल होती है। नववधू लोहड़ी की परिक्रमा करने के बाद परिवार से सभी बड़े-बुजुर्गों से खुशहाल जीवन के लिए आशीर्वाद लेती है।