कब है जीवित्पुत्रिका व्रत? जानें मुहूर्त और ‘जितिया व्रत’ का महत्व

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    -सीमा कुमारी

    हिंदू धर्म में कई व्रत-त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं त्योहारों में से एक है ‘ जिउतिया व्रत’। हर साल यह त्योहार आश्विन महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 29 सितंबर, यानि अगले बुधवार को है। यह व्रत मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखमय जीवन के लिए रखती हैं।  

    ऐसा  कहा जाता है कि, ‘जितिया व्रत’ करने से संतान की लंबी उम्र होती है। इस व्रत को ‘जीवित्पुत्रिका’ और ‘जितिया व्रत’ भी कहते हैं। आइए जानें ‘जितिया व्रत’ का शुभ मुहर्त और पूजा विधि।

    शुभ मुहर्त

    पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 28 सितंबर दिन मंगलवार को शाम के समय 06 बजकर 16 मिनट पर हो रहा है। इस तिथि का समापन अगले दिन 29 सिंतबर दिन बुधवार को रात 08 बजकर 29 मिनट पर होगा। धार्मिक मान्यता है कि व्रत के लिए उदयातिथि मान्य होती है। इसलिए ‘जीवित्पुत्रिका व्रत’ 29 सितंबर को रखा जाएगा।

    ‘जितिया व्रत’ के पहले यानी नहाए खाए को सूर्यास्त के बाद कुछ खाना नहीं चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रत खंडित हो जाता है। ‘जितिया व्रत’ तीन दिनों तक चलता है। पहला दिन नहाए-खाए, दूसरा दिन ‘जितिया निर्जला व्रत’ और तीसरे दिन पारण किया जाता है।

    पूजन विधि

    मान्यताओं के अनुसार, इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान कराएं। धूप, दीप आदि से आरती करें और इसके बाद भोग लगाएं। इस व्रत में माताएं सप्तमी को खाना और जल ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करती हैं और अष्टमी तिथि को पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। नवमी तिथि को व्रत का समापन किया जाता है।

    महत्व

    मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से संतान को दीर्घ आयु, आरोग्य और सुखी जीवन प्राप्त होता है। यह कठिन व्रतों में से एक है। इस व्रत में पानी और अन्न का त्याग किया जाता है, इसलिए यह निर्जला व्रत कहलाता है। इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहते हैं कि उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित किया था। तब से ही स्त्रियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण व्रती स्त्रियों की संतानों की रक्षा करते हैं।