Vishwakarma Puja
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    -सीमा कुमारी

    सनातन हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता कहजाता है |अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है। मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन ही भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इस दिन को विश्वकर्मा पूजा और विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है। 

    इस साल विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर शुक्रवार,को है। भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार,।भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका, जगन्नाथपुरी, भगवान शंकर का त्रिशुल, विष्णु का सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था। इसलिए फैक्ट्रियों से लेकर कंपनियों तक में विश्वकर्मा पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु, ऋषि विश्वकर्मा और औजारों की पूजा की जाती है।

    शुभ मुहर्त

    हर वर्ष की तरह इस बार भी विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग में विश्वकर्मा पूजा मनाया जाएगा। विश्वकर्मा पूजा के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग प्रात: 06 बजकर 07 मिनट से अगले दिन 10 सितंबर को प्रात: 03 बजकर 36 मिनट तक बना रहेगा।

    पूजा विधि

    मान्यताओ के मुताबिक, इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं और  इस दिन पूजा करने के लिए सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहन लें, फिर भगवान विश्वकर्मा की पूजा करें, पूजा में हल्दी, अक्षत, फूल, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, दीप और रक्षासूत्र शामिल करें। पूजा में घर में रखा लोहे का सामान और मशीनों को शामिल करें। पूजा करने वाली चीजों पर हल्दी और चावल लगाएं। इसके बाद पूजा में रखे कलश को हल्दी लगा कर रक्षासूत्र बांधे, इसके बाद पूजा शुरु करें और मंत्रों का उच्चारण करते रहें। पूजा खत्म होने के बाद लोगों में प्रसाद बांट दें।

    ऐसे हुई थी भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए। कहते हैं कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से जन्मे ‘वास्तु’ के सातवें पुत्र थे। जो शिल्पकार के जन्म थे। वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से ऋषि विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। माना जाता है कि अपने पिता की तरह ही ऋषि विश्वकर्मा भी वास्तुकला का आचार्य बनें। माना जाता है कि भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और भगवान शिव का त्रिशूल भी ऋषि विश्वकर्मा ने ही बनाया था। माना जाता है कि भगवान शिव के लिए लंका में सोने के महल का निर्माण भी विश्वकर्मा जी ने ही किया था। कहते हैं कि रावण ने महल की पूजा के दौरान इसे दक्षिणा के रूप में ले लिया था।