कहां चली गई थी भगवान राम की पतंग, जानिए किसने उड़ाई थी पहली पतंग और मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कथा

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    सीमा कुमारी

    नई दिल्ली: हर वर्ष पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी की तिथि को ‘मकर संक्रांति’ (Makar Sankranti) मनाई जाती है। इस वर्ष ‘मकर संक्रांति ‘का पावन त्योहार 15 जनवरी, दिन रविवार को मनाई जा रही है। ‘मकर संक्रांति का त्योहार भारत वर्ष में मनाया जाने वाला प्रमुख महत्वपूर्ण त्योहार है।

    ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में चले जाते है। इसी दिन से ‘खरमास’ (Kharmas) महीना खत्म हो जाता है और शुभ काम फिर से शुरू हो जाते हैं। इस दिन स्नानादि, तिल के दान के साथ-साथ पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। इसी वजह से मकर संक्रांति के त्यौहार को पतंगबाजी का भी त्यौहार कहा जाता है।

    मकर संक्रांति के दिन गुजरात और राजस्थान समेत भारत के तमाम राज्यों में पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। कई जगहों पर पतंगबाजी की प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है कि पतंग उड़ाने की ये परंपरा कैसे शुरू हुई ? आइए जानें इसके बारे में –

    भगवान राम ने शुरू की थी ये परंपरा

    कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन पहली बार भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी। इसको लेकर एक कथा भी प्रचलित है। कथा के अनुसार, एक बार मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण की खुशी में भगवान राम पतंग उड़ा रहे थे। लेकिन, वो पतंग उड़कर इंद्रलोक में चली गई और इंद्र के पुत्र जयंत को मिली। इसके बाद उसने वो पतंग अपनी पत्नी को सौंप दी। इधर भगवान राम ने हनुमान जी को वो पतंग इंद्रलोक से वापस लाने के लिए कहा। जब हनुमानजी ने इंद्रलोक पहुंच कर जयंत की पत्नी से पतंग वापस मांगी, तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि वो पहले श्रीराम के दर्शन करना चाहती हैं। इस पर हनुमान ने भगवान राम को पूरी बात बताई। तब श्री राम बोले कि, वे चित्रकूट में उनके दर्शन कर सकती हैं। हनुमान जी ने राम जी का संदेश जब उन्हें दिया तो उन्होंने श्रीराम की पतंग लौटा दी।  इसके बाद से मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा शुरू हुई और भारत में तमाम जगहों पर इस परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है।  

    मौजूदा समय में पतंगबाजी लोगों को एकता का पाठ सिखाती है। पतंग उड़ाने के बहाने परिवार और आसपास के सभी सदस्य एक साथ समय बिताते है। एक व्यक्ति डोर को संभालता है तो दूसरा मांझा साधता है।  तमाम लोग उस पतंग बाजी को देखकर आनंदित होते है।  इसमें हारकर भी कोई बुरा नहीं मानता। इस तरह से लोग जीवन में पतंगबाजी के बहाने जय और पराजय दोनों स्थितियों को स्वीकार करना सीखते हैं। इसके अलावा, मकर संक्रांति के दौरान कड़ाके की ठंड होती है। ऐसे में पतंग उड़ाते समय लोगों को खुली धूप का लंबे समय तक आनंद लेने का मौका मिलता है। इस बहाने उनके शरीर को विटामिन-D भी मिल जाता है और शरीर को गर्माहट भी मिलती है।

    पतंग उड़ाते समय व्यक्ति अंदर से काफी खुश होता है। जैसे जैसे पतंग उड़ान पकड़ती है, उसका मन भी तमाम चिंताओं से मुक्त होकर पतंगबाजी में लग जाता है। ऐसे में व्यक्ति हर क्षण का पूरा आनंद लेता है। पतंग को ऊंचाई तक उड़ाना और कटने से बचाने के लिए हर पल सोचना इंसान को नई सोच की प्रेरणा और शक्ति देता है। इस कारण पतंग को खुशी और उल्लास का संदेशवाहक भी माना जाता है।