Navratri 2021
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    -सीमा कुमारी

    शक्ति की उपासना का महापर्व ‘शारदीय नवरात्रि’ (Shardiya Navratri) इस वर्ष 26 सितंबर से शुरू होकर 5 अक्टूबर तक चलेगी। हिंदू धर्म में नौ दिनों का यह त्योहार देवी के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। उत्तर भारत और उत्तर पूर्व में नवरात्रि (Navratri) का पावन त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। पूरे नौ दिन मां की पूजा पूरी विधि विधान के साथ की जाती है। माता की स्थापना से पहले मां की मूर्ति को तैयार किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि मां की मूर्ति की मिट्टी कहां से लाई जाती है ? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मां दुर्गा की मूर्ति का निर्माण करने के लिए वेश्यालय की मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। आइए जानें इस बारे में –

    दुर्गा पूजा के दौरान पूजा की जाने वाली दुर्गा की मूर्ति कोलकाता के सोनागाछी से खरीदी गई मिट्टी से बनाई जाती है। दरअसल ये कोलकाता का रेड लाइट एरिया है जहां वेश्याएं अपना जीवन-यापन करने हेतु कुछ बुरे कर्मों में लिप्त रहती हैं। लेकिन मान्यतानुसार, जब तक इस जगह की मिट्टी नहीं मिलती है, तब तक दुर्गा मूर्ति का निर्माण अधूरा माना जाता है। यदि किसी वजह से इस मिट्टी के बिना ही दुर्गा प्रतिमा बना दी जाती है, तो उस मूर्ति का पूजन माता दुर्गा स्वीकार नहीं करती हैं।

    ऐसी मान्यता है कि मंदिर का पुजारी या मूर्तिकार वेश्यालय के बाहर जाकर वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी भीख में मांगता है। मिट्टी के बिना मूर्ति निर्माण अधूरा है इसलिए मूर्तिकार तब तक मिट्टी को भीख स्वरूप मांगता है जब तक कि उसे मिट्टी मिल न जाए। अगर वेश्या मिट्टी देने से मना भी कर देती है तो भी वह उनसे इसकी भीख मांगता रहता है। प्राचीन काल में इस प्रथा का हिस्सा केवल मंदिर का पुजारी ही होता था लेकिन जैसे -जैसे समय बदला पुजारी के अलावा मूर्तिकार भी वेश्यालय से मिट्टी लाने लगा और ये प्रथा अभी भी जारी है।

    वास्तव में यह सुनकर थोड़ा अटपटा लगता है लेकिन इसकी वास्तविकता के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। इसका पहला कारण यह माना जाता है कि जैसे ही कोई व्यक्ति वेश्यालय में प्रवेश करता है वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर ही रह जाती हैं और वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र होती है इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है।

    दूसरी मान्यता के अनुसार वेश्यावृति करने वाली स्त्रियों को समाज से बहिस्कृत माना जाता है और उन्हें एक सम्मानजनक दर्जा दिलाने के लिए इस प्रथा का चलन शुरू किया गया। उनके आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है और उसका उपयोग मूर्ति के लिए किया जाता है। वास्तव में इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनकी ये बड़ी भूमिका उन्हें समाज की मुख्य धारा में शामिल करने का एक बड़ा जरिया है।

    एक सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार कहा जाता है कि पुराने समय में एक वेश्या माता दुर्गा की अनन्य भक्त थी। उसे समाज में तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करने की परंपरा शुरू करवाई। इसी के साथ ही उसे वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा। तभी से वेश्यालय की मिट्टी से दुर्गा प्रतिमा का निर्माण करने की प्रथा प्रचलित हुई।

    इन सभी मान्यताओं की वजह से इस अनोखी प्रथा का चलन शुरू हुआ और दुर्गा प्रतिमा के निर्माण के लिए वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल जरूरी हो गया।