सीमा कुमारी
अखंड सौभाग्य का प्रतीक ‘वट सावित्री’ (Vat Savitri Vrat) का पावन व्रत इस साल 30 मई, सोमवार को है। इसी दिन सोमवती अमावस्या भी है। हर साल ‘वट सावित्री व्रत’ (Vat Savitri Vrat) ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक,’वट सावित्री’ के व्रत का महत्व ‘करवाचौथ’ जितना ही बताया गया है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं। पति के सुखमय जीवन और दीर्घायु के लिए वटवृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करती हैं और वृक्ष के चारों और परिक्रमा करती हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से पति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि के साथ लंबी आयु की प्राप्ति होती है। आइए जानें सावित्री व्रत तिथि, पूजा मुहूर्त और महत्व के बारे में-
पूजा-मुहूर्त
‘ज्येष्ठ अमावस्या’ तिथि प्रारंभ:
29 मई, 2022 दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से आरंभ
अमावस्या तिथि का समापन:
30 मई, 2022 को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर होगा।
पूजा-विधि
‘वट सावित्री व्रत’ के दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं और वट वृक्ष में जल देती हैं। उसके बाद वट वृक्ष में कलावा बांधकर तीन बार परिक्रमा करती है। इसके बाद सिंदूर और रोली से तिलक लगाकर पेड़ की पूजा करती है। वट वृक्ष के नीचे घी का दीया जलाकर, विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद पति की लंबी उम्र की प्रर्थना की जाती है। वट वृक्ष में देवी देवताओं का वास माना गया है। इसलिए ऐसी मान्यता है कि वट वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री अपने पति सत्यवान को पुन: जीवन देने के लिए यमराज को भी विवश कर दिया था। उनकी पतिव्रता धर्म से प्रभावित होकर यमराज ने उनके पति सत्यवान को प्राणदान दिया था, जिससे वे मृत्यु के बाद फिर से जीवित हो गए थे। पतिव्रता सावित्री की कथा अमर हो गई और तब से हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाने लगा।
सुहागन महिलाएं ‘वट सावित्री व्रत’ रखती हैं, ताकि उनके पति की उम्र लंबी हो। उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो, सभी संकट एवं कष्ट दूर हो जाएं। वट वृक्ष की पूजा करने से घर में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है। धन का अभाव दूर होता है।