-सीमा कुमारी
त्योहारों के इस देश में नवरात्रि एक ऐसा त्योहार है, जिसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरीको से मनाया जाता है। गुजरात से लेकर बंगाल यानी कोलकाता तक दुर्गा पूजा यानी शक्ति की आराधना के इस महापर्व का बड़ा महत्व है। कहीं मां की भक्ति में गरबा करने का रिवाज है तो कई सिंदूर खेला की विशेष परंपरा है, लेकिन श्रद्धा और आस्था हर जगह एक जैसी है।
पश्चिम बंगाल में नवरात्रि के अंतिम दिन दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है और इस दिन दशहरे के शुभ अवसर पर बंगाली समुदाय की महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। जिसे सिंदूर खेला की रस्म के नाम से जाना जाता है। बंगाली महिलाओं के लिए सिंदूर खेला एक बड़ी और विशेष रस्म मानी जाती हैं। इस साल यह पर्व 15 अक्तूबर शुक्रवार को पड़ रहा है। आइए जानें आखिर दशहरे के दिन ही क्यों मनाई जाती है, ‘सिंदूर खेला की रस्म’।
इस पर्व को मनाने के पीछे सदियों पुरानी परंपरा जुड़ी है। कहा जाता है कि जिस तरह बेटियां अपने ससुराल से मायके आकर रहती है। फिर कुछ दिनों के बाद अपने घर यानि ससुराल वापिस लौट जाती है। ठीक उसी तरह देवी दुर्गा अपने मायके यानि धरती पर आकर रहती हैं। अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। फिर 9 दिन बीताने के बाद दशमी तिथि पर अपने घर यानि भगवान शिव के पास मां पार्वती के रूप में कैलाश पर्वत पर वापिस चली जाती हैं।
लोग जिस तरह बेटियों को उनके ससुराल जाने पर खाने-पाने, कपड़े आदि सामान भेंट देते हैं। ठीक उसी तरह लोग दुर्गा मां के विसर्जन से पहले उनके पास एक पोटली भरकर बांध देते हैं। इस पोटली में मां के श्रृंगार का सामान, भोग आदि रखा जाता हैं। ताकि उन्हें देवलोक जाते समय रास्ते में कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े।
बंगाली समुदाय की महिलाएं इस विशेष पर्व पर दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर से होती खेलती है। इसे ‘सिंदूर खेला’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि सिंदूर खेला का उत्सव आज से करीब 450 साल पहले से मनाया जा रहा है। इस दिन महिलाएं पान के पत्तों पर सिंदूर रखकर उसे मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करती है। फिर उससे उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाती है।
मान्यता है कि इस पर्व को मनाने से देवी मां की असीम कृपा से सुहाग की लंबी उम्र होती है। इसके दिन दुर्गा मां को पान और कई अलग-अलग मिठाइयों का भोग भी लगाने की परंपरा है। इसे विवाहित महिलाओं द्वारा खेला जाता है। इस दौरान महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर बधाई देती है। देवी मां के अखंड सौभाग्य की कामना करती है। इस शुभ मौके पर देशभर के कई जगहों पर नाच-गाने के खास आयोजन होते हैं।