-सीमा कुमारी
वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले एकादशी को ‘मोहिनी एकादशी’ कहते हैं। ‘मोहिनी एकादशी’ (Mohini Ekadashi) व्रत 12 मई दिन गुरुवार को है। शास्त्रों के अनुसार, मोहिनी एकादशी व्रत से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि पुण्य भी प्राप्त होता है तो आइए जानें मोहिनी एकादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा और महत्व के बारे में –
श्रीराम ने भी किया था ‘मोहिनी एकादशी’ का व्रत
शास्त्रों के अनुसार, मोहिनी एकादशी विशेष फलदायी एवं मनवांछित फल प्रदान करने वाला व्रत है। ऐसी मान्यता है कि, त्रेता युग में भगवान राम ने भी अपने गुरु वशिष्ठ मुनि से इस एकादशी के बारे जानकारी प्राप्त की थी। मोहिनी एकादशी का महत्व के कारण भगवान राम ने भी मोहिनी एकादशी का व्रत किया था। इसके अलावा द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को यह व्रत करने की सलाह दी थी।
मोहिनी एकादशी व्रत का प्रारम्भ दशमी तिथि से ही हो जाता है। दशमी तिथि को मसूर की दाल, बैंगन, कोदों की सब्जी, पान तथा शहद का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही एकादशी की रात में सदैव रात्रि जागरण कर कीर्तन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करा कर यथाशक्ति दान देने के बाद ही पारण करें।
मोहिनी एकादशी पर ऐसे करें पूजा
मोहिनी एकादशी विशेष फलदायी होती है इसलिए भक्तों को इसकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इस दिन भक्त को सदैव ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। उसके बाद स्नान कर साफ कपड़े पहन सच्चे मन से व्रत रखने का संकल्प लें। फिर घर के मंदिर को स्वच्छ रखें। घर के मंदिर में एक चौकी पर विष्णु की प्रतिमा स्थापित कर पंचामृत तथा स्वच्छ जल से स्नान कराएं।
उसके बाद हल्दी, चंदन, अक्षत, अबीर, गुलाल, वस्त्र तथा मेंहदी भगवान को अर्पित करें। साथ ही धूपबत्ती तथा देशी घी का दीपक भी जलाएं। भगवान को भोग लगाते समय ध्यान रखें कि उन्हें मौसमी फल, मिठाई, मेवे, पंचमेवा तथा पंचामृत अर्पित करें। विष्णु भगवान को भोग लगाते समय सदैव ध्यान रखें कि कभी भी भोग सामग्री में तुलसी पत्र अवश्य रखें। अब भगवान की आरती उतार कर सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। इसके बाद एकादशी व्रत कथा पढ़े और ईश्वर से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें।