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    -सीमा कुमारी

    4 अक्टूबर, मंगलवार को ‘शारदीय नवरात्रि’ (Shardiya Navratri)  का आखिरी दिन यानी महानवमी (Maha Navami) है। शास्त्रों के अनुसार,  माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से व्यक्ति को सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही उसे ज्ञान, बुद्धि, धन, ऐश्वर्य इत्यादि सभी सुख-सुविधाओं की भी प्राप्ति होती है। कई लोग नवरात्र पर्व की नवमी तिथि को कन्या पूजन करके 9 दिनों से चले आ रहे व्रत का पारण करते हैं। इस दिन हवन व आरती से इस विशेष पर्व का समापन करते हैं। आइए जानें माता सिद्धिदात्री का स्वरूप पूजा विधि, मंत्र और आरती।

    महानवमी तिथि

    पंचांग के अनुसार, मंगलवार, 3 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 37 मिनट से नवमी तिथि की शुरुआत हो रही है। वहीं नवमी तिथि का समापन 4 अक्टूबर 2022 को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट पर होगा। उदया तिथि के मुताबिक नवमी का व्रत और कन्या पूजन 4 अक्टूबर को ही किया जाएगा।

    शुभ मुहूर्त

    नवरात्रि के 9वें दिन यानी नवमी तिथि को नवरात्रि का समापन होता हैं। इस दिन हवन और कन्या पूजन का विधान हैं। ऐसे में 4 अक्टूबर को हवन के लिए शुभ मुहूर्त  सुबह 6 बजकर 21 मिनट से दोपहर 2 बजकर 20 मिनट तक हैं। इसके अलावा, नवरात्रि व्रत-पारण के लिए शुभ समय दोपहर 2 बजकर 20 मिनट के बाद हैं।

    पूजा विधि

    मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-ध्यान करके पूजा स्थल की साफ सफाई करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से सिक्त करें। फिर मां सिद्धिदात्री को फूल, माला, सिंदूर, गंध, अक्षत इत्यादि अर्पित करें। साथ ही तिल और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं। इस दिन आप मालपुआ, खीर, हलवा, नारियल इत्यादि भी माता को अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद माता सिद्धिदात्री स्तोत्र का पाठ करें और धूप दीप जलाकर माता की आरती करें। आरती से पूर्व दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करना ना भूले।

    नवरात्र महापर्व के अंतिम दिन माता को विदाई देते समय कन्या पूजन और हवन करने का विधान शास्त्रों में वर्णित किया गया है। मान्यता है कि हवन करने के बाद ही व्रत का फल प्राप्त होता है। इसलिए माता दुर्गा की पूजा के बाद हवन जरूर करें। ऐसा करने से सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और माता सिद्धिदात्री की कृपा सदैव अपने भक्तों पर बनी रहती है।

    इन मंत्रों करें का जाप

    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।

    ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।

     

    वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

    कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्।।

     

    या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

    ‘माता सिद्धिदात्री’ का स्वरूप

    पुराणों के अनुसार माता सिद्धिदात्री मां लक्ष्मी की ही भांति कमल पर विराजमान रहती हैं और माता के चार भुजाएं हैं जिनमें से प्रत्येक भुजा में शंख, चक्र और कमल का फूल विराजमान है। शास्त्रों के अनुसार माता सिद्धिदात्री सभी आठ सिद्धियों की देवी है जिन्हें अणिमा, ईशित्व, वशित्व, लघिमा, गरिमा, प्राकाम्य, महिमा और प्राप्ति के नाम से जाना जाता है। माता सिद्धिदात्री की पूजा करने से इन सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।