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    -सीमा कुमारी

    धनतेरस (Dhanteras) का महापर्व हर साल कार्तिक महीने की त्रयोदशी तिथि को बड़े ही धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। धनतेरस से ही दीपों का त्योहार दीपावली महापर्व की शुरुआत हो जाती है। यह महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है, जिसमें लोग सोना (Gold) और चांदी (Silver) के बर्तन खरीदना शुभ मानते हैं।

    इस दिन मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर (Kuber), यमराज और धन्वंतरि जी की पूजा-अर्चना की जाती है | धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन सोने-चांदी और घर के बर्तनों को खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन विधि-विधान से की गई पूजा अर्चना से घर में सुख-समृद्धि आती है और माता लक्ष्मी, भगवान धन्वन्तरि, की असीम कृपा भक्तों पर सदा बनी रहती है। ऐसे में  चलिए जानें भगवान धन्वंतरि की पूजा विधि, मंत्र, शुभ मुहूर्त –

    शुभ मुहूर्त

    धनतेरस इस साल 2 नवंबर 2021 दिन मंगलवार को है।  ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र के मुताबिक, 2 नवंबर को प्रदोष काल शाम 5 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 11 मिनट तक का है। वहीं वृषभ काल शाम 6.18 मिनट से रात 8.14 मिनट तक रहेगा। धनतेरस पर पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 6.18 मिनट से रात 8.11 मिनट तक रहेगा।

    इस तरह करें पूजा

    धनतेरस के दिन पूजा-अर्चना करने के लिए सबसे पहले एक चौकी लें और उस पर लाल कपड़ा बिछा दें। अब उस पर गंगाजल का छिड़काव कर मां महालक्ष्मी, कुबेर देवता और भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा या तस्वीरों को स्थापित करें।

    इसके बाद भगवान की प्रतिमा/तस्वीरों के सामने शुद्ध (देसी) घी का दीपक जलाएं। उसके साथ ही धूप और अगरबत्ती को भी जलाएं। इसके बाद सभी देवी-देवताओं को लाल फूल अर्पित करें।

    इस दिन आपने जिस भी आभूषण, धातु या फिर बर्तन की खरीदारी की है उस चौकी पर रख दें। अगर खरीदारी नहीं की है तो घर में ही मौजूद सोने या चांदी के आभूषणों को भी चौकी पर रख सकते हैं।

    इसके बाद लक्ष्मी यंत्र, लक्ष्मी स्त्रोत, लक्ष्मी चालीसा, कुबेर यंत्र और कुबेर स्त्रोत का पाठ करें. पूजन के दौरान लक्ष्मी माता के मंत्रों का भी जाप करते रहें। सभी देवताओं को मिष्ठान्न का भोग भी लगाएं।

    इन मंत्रों का करें जाप

    ॐ श्री धनवंतरै नम:

     

    ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:,

    अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,

    त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप,

    श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः

     

    ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः,

    सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम,

    कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम,

    वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम।